गुरुवार, 1 जून 2017

रघबीर सिंह

किस्सा शहीदे आजम भगत सिंह
शहीद भगत सिंह का किस्सा उन दिनों का किस्सा है जब भारत पर अंग्रेजों का जुल्म -सितम जोरों पर था। यह कहानी उन दिनों की है जब सूरज की किरणें नित्य नये नये काले कानून लेकर आती थी। लूट , शोषण ,जुल्म और ज्यादतियों के खिलाफ अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले हंसते हंसते फांसी के फंदे चूमने वाले क्रान्तिकारी वीरों की कहानी है यह।
   भूमि लगान उगाही करने के लिए जो फसल का 70 फीसदी तक हो सकता था,सारे गांव को ईक्ट्ठा करके बेइज्जत किया जाता था,बहु बेटियों के सामने लोगों को नंगा कर दिया जाता । किसी भी प्रकार के विरोध पर जेल में डाल दिया जाता या गोली मार दी जाती। पूरे पंजाब में माल उगाही के खिलाफ आन्दोलनों का जोर होता है , उस समय लायलपुर ;अब पाकिस्तान में   द्ध के बंगा गांव में सरदार अर्जुन सिंह के घर 27 सितम्बर 1907 की रात एक पुत्र जन्म लेता है जो हर तरह की लूट खसोट ,शोषण , जुल्म ज्यादती के विरोध में शोषण रहित समाज के लिए जिन्दगी का हर पल कुर्बान करते करते मात्र 23 साल की उम्र में हंसते हंसते ईंकलाब को बुलन्द करने के लिए फांसी के फन्दे पर अपने दोस्तों के साथ झूल जाता है। इस महान क्रान्तिकारी की मां होने का श्रेय श्रीमति विद्यावती को है। इसके दोनों चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में गिने जाते हैं।पूरे परिवार की देशभक्ति का असर भगतसिंह पर बचपन से ही गहरा होता जाता है।
    भगत सिंह व उनका बड़ा भाई जगत सिंह दोनों को गांव के स्कूल में दाखिल करवाया जाता है। परन्तु 11साल की उम्र में ही जगत सिंह का देहान्त हो जाता है। उच्च शिक्षा के लिए भगत सिंह को डी. ए. वी. स्कूल लाहौर भेजा जाता है। आजादी का आन्दोलन दिन प्रतिदिन जोर पकड़ता है तो अंग्रेजों का दमन चक्र भी उसी जोर से चलता है।13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियां वाला काण्ड होता है। उस समय भगत सिंह की उम्र 11 साल 6 महीने होती है। उस घटना ने बालक भगतसिंह के दिमाग में विद्रोह के अंकुर को एकदम से पौधे का रुप दे दिया। वो बालक भगतसिंह के जलियांवाले बाग से मिट्टी लाकर सुबह सायं उसकी पूजा करता है।
 सरदार  किशन सिंह और अजीत सिंह लोगों को अंग्रेजों के जुल्मों के बारे में बताते हैं किः-
  हिन्दुस्तान देश म्हारे की बात कदे थी न्यारी।
  नाश हो लिया कति देश का आगे अंग्रेज व्यापारी- टेक
1 प्रदेशी का राज बणा म्हारी करदी रे रे माटी
  ईज्जत के दो धलले हागे न्यूं होरी तबियत खाटी
  फूट गेरकै दूर करे या एक नीति न्यारी छांटी
  साहूकार मिलाए अपनी औड़ उननै भी जड़ काटी
  कोए जेल मैं कोए बारनै सब मारे लोग व्यवहारी।
2 जो कारीगर थे म्हारे देश के चौड़े मैं सिर तार दिए
  रेशम मलमल बुण्या करैं थे हाथ काट कै मार दिए
  पुलिस मिलिट ªी गाम गाम मैं सारै तम्बू डार दिए
  बरखिलाफ बोलण आले वे काले पानी तार दिए
  इस जोर जुल्म की टक्कर मैं खड़े होगे नर नारी।
3 जुल्मां मैं तै घाट ना घालैं ना होता दिखै टाला
  अपने आप जावै कोन्या बिन काढें म्ीारा दिवाला
  एकलाश करे बिन पार पड़ै ना रहै ज्यान का गाला
  खाग्ये खेत गोलिये रै तुम रटो राम की माला
  आंधा गधा वरु मैं चर रहया कित गई अक्कल थारी।
4 जिसनै कहैं सैं राम राज म्हारे देश मैं ल्यावेंगे
  आजादी की खातर हम अपनी बलि तक चढ़ावेंगे
  मुक्ति आली राही पागी सारा देश जगावेंगे
  एका करकै फौज बनावैं गोरयां नै मार भगावेंगे
  रघबीर सिंह छंद घड़ै के ना रहैगी लाचारी।
वार्ता- इन बातों को सुन लोग कहते हैं सरदार जी जिनके राज मैं सूरज नहीं छिपता उनसे टक्क्र लेना और जीतना क्या आसान है। किशन सिंह कहता है भाईयो अंग्रेजों ने हमारी जो हालत कर रखी है सबके सामने है। हमें पशुओं की तरह लाठियों से हांका जाता है। हमें इन्सान नहीं समझा जाता। हमारा भाईचारा छिन्न भिन्न किया जा रहा है। दुनिया की बहुत सी मिशालें हैं जब जब जुल्म बढ़ा लोग ईक्ðे हुये , लड़े और जीते हैं और इस जुल्म को खत्म करने का एकमात्र तरीका यही है-
  बुरे वक्त की बुरी कथा हो रही सै रे रे माटी।
  अंग्रेजां का राज देश पै चोगरदे कै लूटा पाटी-टेक
1 सात समन्दर पार चालकै लूटण खातर आये सैं
  कई ढाल के काले कानून म्हारे उप्पर लाये सैं
  फूट गेरकै न्यारे कर दिए कई कई घणे सताये सैं
  कोए पुचकारया कोए दुत्कारया पर लोग समझ ना पाये सैं
  चौगरदे कै कब्जा करग्ये के दिल्ली के गोहाटी।
2 ढाका आली मलमल नामी ओड़ै जुल्म कसूते तोल दिये
  हीरालाल के हाथ काट कै जुल्म के फाटक खोल दिये
  खान मिस्त्री नै फांसी देद्यो हुूक्म खुलाशे बोल दिये
  हम चाहवैं न्यूं रहणा होगा बजा देश मैं ढोल दिये
  समझण आाले थोड़े रहग्ये सै उनकै गात उचाटी।
3 भाईचारा पंचायत तोड़ दी पुलिस का पहरा बिठा दिया
  सरकार कहे वो सजा करैगा खौफ गहरा बिठा दिया
  आपस का इकलाश खोकै समाज का ढैहरा बिठा दिया
  गैरयां के हाथ नकेल म्हारी न्यूं होरी सै तबियत खाटी।
4 खेती उप्पर टैक्स घणा दुख पा रहया सै घणा किसान
  सौ मैं सतर देना होगा गोरयां नै करया ऐलान
  मींह बरसै चाहेकाल पड़ै देना होगा जरुर लगान
  रात अन्धेरी गाम छोड़ग्ये यो सै असली हिन्दुस्तान
  रघबीर सिंह कहै भैंस उसे की जिसकै हाथ सै लाठी।
वार्ता- लगातार पड़ते अकालों से किसानों की हालत खराब हो जाती है । एक दिन अंग्रेज अधिकारी कुछ सिपाहियों के साथ माल उगाही के लिए बंगा गांव में आता है । एक गरीब किसान हाथ जोड़ कर कहता है सरकार अगली फसल पर सारा दे दूंगातब तक के लिए माफी चाहता हूं। इतना सुनते ही अंग्रेज अफसर डण्डे से पिटाई करता है तो किसान सिर से पगड़ी उतार अधिकारी के पैरों की तरफ चलता है और प्रार्थना करता है कि-
        3
किसान की प्रार्थना। तर्ज - यशोमति मैया
    छः महीने की मोहल्लत दे दे फेर देद्यूं थारी उधार।
    पैर पकड़ कै माफी मांगूं धरदी मनै पागड़ी तार- टेक
1 तुम सुनियो मेरी अरदास-ना एक धेला तक मेरै पास
मेरी फसल का होग्या नाश-थम कुछ करल्यो सोच विचार।
2 फसल पछेती जाडे नै मारी-मनै होरी सै मुश्किल भारी
पाई पाई दयूंगा थारी- मैं कति करता ना इन्कार।
3 इसमैं ना सै मेरा खोट- चाहे मेरा दियो गल घोट
थारे पायां के म्हां गया लोट-मैं हो लिया कति लाचार।
4 रघबीर सिंह कहै खर्चा भारया-बड़ी मुश्किल तैं होवै गुजारा
भुलूं ना अहसान थारा- मनै बख्श दियो मेरी सरकार।
वार्ता- अंग्रेज अधिकारी की गर्जना और किसान की दुखभरी आवाज को सुन किशन सिंह और स्वर्ण सिंह आ जाते हैं , किसान को उठा कर कहते हैं ‘ भाई मेरे पगड़ी सम्हाल’, भीख मत मांग , अधिकारों के लिए लड़ । तूने तो पगड़ी उसी के पांव में रख दी जिसने हमारी ईज्जत -पगड़ी- को तार तार किया है। क्या कहते हैं कि-
  4-  किसान को समझाना
      पगड़ी सम्हाल जटा क्यों लोट गया पायां मैं।
      सन् उन्नीस सौ सात नै तेरै याद दिलावण आया मैं-टेक
1 वे गदरी बाबा आये- थे दिल मैं घणे उम्हाये
ना उल्टे कदम हटाये- था घणा जोश काया मैं
2 तूं सै वीरां की औलाद-क्यूं भूल गया मर्याद
उन्नीस सौ सात नै करले याद-वाहे पगड़ी ल्याया मैं।
  3   यो राजा जुल्मी सै प्रदेशी-करदी हालत पशुओं केसी
अधम बिचालै त्रिशंकु जैसी- खड़ा चारों औड़ लखाया मैं।
खोणा हो अंधेर- म्हारे कष्ट मिटैंगे फेर
3 रघबीर सिंह पै राखिए मेर-लिए मान तेरा मां जाया मैं।
वार्ता- स्वर्ण सिंह वहां खड़े किसानों को बताता है कि आज हमारी जो दुर्गति हो रही है वो राम ने नहीं इस विदेशी राज ने कर रखी है और हम उन्ही के सामने हाथ जोड़े खड़े हैं। इसको अच्छी तरह समझ लो अगर समस्या , दुखों को मिटाना है तो यह राज भी मिटाना होगा।
5    स्वर्ण सिंह का कहना
भारतवासी उठ जाग तूं ईब तक लुटया भतेरा।
दिन और रात कमावै फेर भी उज्जड़ सै तेरा डेरा- टेक
1 अन्न्दाता तेरा हाल देख यो हो रहा सै मोटा चाळा
जेठ दोफारी जा उपर कै जा सै पौ का पाळा
तन पै कपड़ा ना पेट मैं रोटी हुया ज्यान का गाळा
उमर बीतग्ई टोटे मैं यो मकड़ी आळा जाळा
हाड मांस तेरा पिसता रहै ज ैना हो एका तेरा।
2 ढंग देखल्यो मजदूरां का जो काम करैं कारखानां मैं
दस दस साल के बालक कमावैं आधे आधे आनां में
इसे तरियां चाल्या आवै पाछले कई जमानां में
हम भूखे कुछ मौज करैं यो फर्क घण इन्सानां मैं
दिन धोली मैं डाका पड़रया बण्या अंग्रेज लुटेरा।
3 देश म्हारा और धरती म्हारी अंग्रेज अीच मैं आये क्यूं
लूट लूट कै खाग्ये पापी कब्जे आड़ै जमाये क्यूं
रल मिल कै नै आवाज उठाओ तुम इतने घबराये क्यूं
मरण तैं आगै कुछ ना होणा थरे चेहरे मुरझाये क्यूं
पां पकड़ण तैं बात बणै ना क्यूं जात आपणी देरया।
4 रयां रयां करकै माफी मांगै के देगी सरकार तनै
हो लिया सत्यानाश कति जब धरी पगड़ी तार तनै
सब भाईयां की कीमत लादी कोण्या करया विचार तनै
रघबीर सिंह कहै इन गोरयां तैं खाणा चाहिये खार तनै
मंगल पांडे नै शुरु करी के कोन्या सै तनै बेरा।
वार्ता- सरकारी काम में दखल डालने के आरोप में किशन सिंह और स्वर्ण सिंह को गिरफतार कर लिया जाता है। बालक भगत सिंह अपनी मां से पूछता है - मां ये पुलिस वाले पिता जी और चाचा जी को क्यों ले गये? तो उसकी मां उसे  इधर उधर की बातों से बहलाना चाहती है परन्तु वो बालक भगत सिंह बार बार पूछता है और अपनी मां से विनती करता है-

         चाहिये मां तनै खोल बताणा,मनै कोन्या मतलब जाणा
                                तूं क्यूं मनै भकावै मां -टेक
1 या तो मैं भी जाण गया सै बात पहाड़ तैं भारी
भारत मां हो जिन्दाबाद या आवाज चोगरदै आरी
छारही क्यूं तेरै ंआज उदासी ,कोण्या बात जरा सी
                    क्यू ंना खोल सुणावै मां ।
2 सारे कðे होकै बोलैं थे हो भरत जिन्दाबाद
अंग्रेजो यो भारत छोड़ो क्यूंक र दिये बर्बाद
मेरै याद बात सैं सारी, ईब आगै तेरी सलाह री
                    क्यूं मेरा लहू जलावै मां ।
3 मेरे पिता जी आगै आगै गैल पुलिस का लारा
नारे लावैं गद्दी छोड़ो यो भारत देश हमारा
यो सारा भेद मनै बतारी, के चाहवै सै मेरा पिता री
                    क्यूं बात छुपावै मां।
    4      रोम रोम मैं छाग्या सै मेरे इन बोलां का रंग
इसे रंज मैं मरना हो दिखै सै इसा ढंग
रघबीर सिंह कहै नहीं आराम सै, बाण्डा हेड़ी जिसका गाम सै
                        कदे  ये छंद बनावै मां।
वार्ता- भगत सिंह की मां उसे बार बार समझाती है बेटा तूं अभी छोटा है परन्तु वह सवाल करता रहता है तो मां उसे बताती है कि तेरे पिता जी और दोनों चाचा आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और खोल कर भगत सिंह को समझााती है कि-
           ध्यान लगाकै सुणिये बेटा सुणा दयूं हाल तमाम तेरा
           लन्दन आले राज करैं सैं देश बण्या गुलाम तेरा- टेक
1 सन् सौलह सौ इस्वी मैं ईस्ट इन्डिया कम्पनी आई थी
व्यापार करैं और दंगे कराणा दोहरी नीति अपनाई थी
छोटी छोटी रियासत थीना किसे की सुणाई थी
थोड़े दिन मैं राज बणाग्ये कोन्या पार बसाई थी
    2      फेर चोगरदै फिरगे थे ना लाया किमै दाम तेरा।
लूट लूट कै म्हारी कमाई सब लन्दन पहुंचादी
कारीगर थे म्हारे देश के कति करदी बर्बादी
हाथ तलक भी काट दिये जो बुणैं थे मखमल खादी
पाछै रुक्का रोला होया जब आग फंूस मैं लादी
राजपाट सब इनका होग्या ना छोडया कोए गाम तेरा।
     3     हम दिन रात कमावैं सैं ये गोरे बैठे ठाली
इनकै धन की कमी नहीं म्हारे घर होये खाली
रोजाना टैक्स नये नये घर घर बढ़ी कंगाली
बोलण तक की नहीं आजादी हो रही सै घणी काली
भारत आले भरती करकै कर दिया सही इन्तजाम तेरा।
4 बड़े बडेरे कहते आये  म्हारे हिन्द नै आजाद करो
म्हारे देश नै आप सम्हालां मतना तुम बर्बाद करो
ईन्कलाब कहै जामता बच्चा पैदा इसी औलाद करो
हक चाहिये तो लड़ना सीखो नहीं कदे फरियाद करो
कदे रघबीर सिंह दिया करैगा दुनिया मैं पैगाम तेरा।
वार्ता- उन्ही दिनो सन् 1919 में रोलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह लीग का गठन करके महात्मा गान्धी द्वारा चलाया असहयोग आन्दोलन चल रहा होता है । भगत सिंह 9वीं कक्षा में पढ़ते हुए स्कूल छोड़कर वालन्टियर बन इस आन्दोलन में कूद पड़ता है। परन्तु 1922 में इस आन्दोलन के चलते बिहार के किसान पुलिस ज्यादतियों के विरोध में चौरा चोरी थने पर हमला करते हैं , थाने में आग लगा दी जाती है जिसमें कई पुलिस वाले मारे जाते हैं। इस घटना को हिंसा का नाम देकर गान्धी जी आन्दोलन वापिस ले लेते हैं। चरम पर पहुंचे आन्दोलन को रोकने से सारा ही देश उदास निराश और दुखी होता हे। भगत सिंह को भी निराशा होती है। परन्तु कोई रास्ता नहीं मिलता तो फिर नैशानल कालेज में दाखिला ले लेता है ।यह कालेज उन दिनों देश भक्तों की नर्सरी कहलाता है। कालेज के प्रसिद्ध प्रोफैसर भाई परमानन्द और जयचन्द विद्यालंकार के माध्यम से यशपाल भगवतीचरण वोहरा और सुखदेव से भगत सिंह का सम्पर्क बन जाता है, जिनका उतरप्रदेश के क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला खान से सम्पर्क  होता है। नैशनल कालेज के ये छात्र एक दिन भगत सिंह के घर आ मां विद्यावती से मिलकर अंग्रेजों से छुटकारा पाने की भावना को बताते हैं और बातचीत करते हैं कि-

        भारत की आजादी के हम होगे वीर सिपाही ।
        दे दे आर्शीवाद तेरा हम चाले जननी माई- टेक
  1    सब- उस धरती पै जन्म लिया इसका परण पुगाणा सै
दे आवाज बुलावै सै यो हमनै फर्ज निभाणा सै
म्हारे सिर पै आज धरया यो भारी बोझ बिराणा सै
आर्शिवाद तेरा चाहिये री फेर जल्दी वापस जाणा सै
    2 मां- कदम कदम पै मुश्किल आवै करणा हो घणा ख्याल
राह मुश्किल सै सोच कै चालियो कदे बिगड़ ज्या ताल
म्हारे देश का इन गोरयां नै लूट लिया धन माल
मजदूर और किसानां नै थम जगा दियो मेरे लाल
हिम्मत का हो राम हिमाती या दुनिया कहती आई।
    3 सब- आर्शिवाद म्हारे सिर पै तेरा हमनै कौण टोकले मां
डरते ना गोरे फिरंगियां तैं चाहे पूरी फोज झोंकले मां
होवैगी घमासान लड़ाई ईब छाती खूब ठोकले मां
मरज्यांगे इस देश की खातर हमनै कौण रोकले मां
आजादी नै ब्याह कै ल्यावैं म्हारी जब हो सफल कूमाई ।
   4  मां- थम तनम न धन वार चले मत करियो आराम सुणो
लिया संकल्प कुर्बानी का यो मेरा तम पैगाम सुणो
आजादी अनमोली होसै मेरे दिल का हाल तमाम सुणो
थारी क्रान्ति का इतिहास लिखैगा रघवीर सिंह वो नाम सुणो
डसका बाण्डाहेड़ी गाम सणो करैगा वीरां की कविताई।
वार्ता- मां से आर्शिवाद के बाद सभी पूरे जोश से संगठन के काम में जुट जाते है। इसी दौरान  भगत सिंह के परिवार के सभी सदस्य उसकी शादी की बात करते हैं। इस रिरूते के लिए लड़की भी देख ली होती है पर भगत सिंह इसे सही ना मानकर संगठन के साथियों से सलाह मश्विरा करता है। संगठन के समझदार साथी सचिन्द्र नाथ सान्याल से विचार कर भगत सिंह गणेश शंकर विद्यार्थी के पास कानपुर चला जाता है और अपने पिता को एक चिठी लिखता है-
’घर को अलविदा - हम देश सेवा करते हैं’
पूज्य पिता जी ,
नमस्ते !
मेरी जिन्दगी मकसदे आाला यानि आजादी -ए-हिन्द के असूल के लिए वक्फ हो चुका है, इसलिए मेरी जिन्दगी में आराम और दुनियावी खाहशात बायसे कशिश नहीं है।
     आपको याद होगा कि जब मैं छोटा सा था तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवित के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते-वतन के लिए वक्फ कर दिया है, लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूं।
उम्मीद है आप मुझे माफ फरवायेंगे।
    आपका ताबेदार
भगत सिंह
भगत सिंह का पिता को पत्र
9
घर कुन्बे का जिकरा सुण्या जब बणी बेदना न्यारी।
हुक्म उदुली माफी चाहूं जो करदी गल्ती भारी- टेक
1 जन्म दिया और लाड लडाये घणे चाव तैं पाला
  चहिये हुक्म पुगाणा था पर ब्योंत बण्या और ढालां
  थारे हुक्म का कर दिया टाला ला बात मान ल्यो म्हारी।
2 हाथ जोड़ कै कहरया सूं मेरा कर दियो माफ कसूर
  घर बार छोड़ कै जाउं सूं उस बात तैं हो मजबूर
  आजादी मैं हुया चूर मेरै मोटी लगी बीमारी।
3 मात पिता और कुन्बा सारा करणा चाहो शादी
  पर इसतैं आगै जाकै मनै सूरत देश पै वादी
  ब्याह कै ल्याउं आजादी मनै लागै जी तैं प्यारी।
4 देश कै उपर मरना आच्छा नातै के जी कै नै करणा
  इब उल्टा कदम हटाउं कोण्या चाहे पड़ै दुख भरणा
  शेर की तरियां होसै मरणा कहैग्या रघबीर सिंह प्रचारी।
वार्ता - पिता जी के नाम चिट्ठी छोड़ भगत सिंह गणेश शंकर विद्यार्थी के पास कानपुर आ जाता है। यहो प्रताप प्रैस में बलवन्त नाम से लिखना व अखबार बेचने का काम करता है। यहीं पर यू पी बंगाल के क्रान्तिकारियों से मुलाकात होती है। और ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ के कार्यक्रम के बारे में और विस्तार से चर्चा करके एक दिशा निर्धारित की जाती है कि ‘ एक संगठित और सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा भारत के संयुक्त राज्यों को एक संघ गणराज्य की स्थापना करना। इस गण राज्य के बुनियादी सिद्धान्त होंगे - मजदूर , किसान के मताधिकार की स्थपना करना तथा उन सभी प्रणालियों का सफाया करना जो आदमी द्वारा आदमी का किसी भी प्रकार का शोषण दमन और लूट को सम्भव बनाती हैं।
     9 अगस्त सन् 1945 में संगठन के पास धन की भारी कमी को दूर करने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में लखनउ के पास काकोरी गांव के पास रेलवे खजाना लूटा जाता है परन्तु कुछ दिनों में संगठन के कई साथी गिरफतार कर लिए जाते हैं। संगठन का ढांचा चरमरा जाता है। तो चन्द्रशेखर आजाद गिरफतार साथियों को छुडाने व लड़ाई को आगे ले जाने के लिए 26.9.1925 को क्रान्तिकारियों को चिट्ठी लिखकर आहवान करता है कि-
10
आजादी के चाहने वाले कित सोग्येे तम पड़कै।
जन्म मोम या रुक्के दे रही कित बैठग्ये भीतर बड़कै-टेक
1 बेइमान फिरंगी नै आकै म्हारे देश नै दास बणाकै
  आपस के म्हां लड़वाकै, पागल कर दिये बद्धि हड़कै।
2 म्हारा खोग्या दीन इमान,म्हारी तो होरही अक्कल विरान
  जग मैं म्हारी केसै श्यान,यो बेईमान बदेशी कुणक ज्यूं रड़कै।
3 जो थे आजादी के रखवाले , वैं सब ठा जेलां मैं डाले
  असल माणस जो छुटवाले , जिनकी भुजा जोश मैं फड़कै।
4 पराधीन ना सुख हो ,उसके भीतरले मैं दुख हो
  रधबीर सिंह जब सम्मुया हो, ना लिकउ़ै मुड मति कै जड़कै।
वार्ता- काकौरी के इस केस में सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला तथा क्रान्तिकारियों की ओर से गोबिन्द बल्लब पंत , बहादुर जी चन्द्रभान गुप्ता और मोहन साल सक्सैना पैरवी करते हैं। संगठन के पास पैसे व साथियों की कमी , अंग्रेज सरकार की चंस्ती , गिरफतार साथियों को छुंड़ाने में आड़े आई और निराश हो भगत सिंह लाहौर आ जाता है। परन्तु चंप बैठ जाना तो खून में ही नहीं होता। यशपाल , भगवती चरन वोहरा,धन्वन्तरि व संखदेव सुशीला से मिलकर नौजवान भारत सभा का गठन कर गदर पार्टी के शहीद करतार सिंह सराभा का शहीदी दिवस मनाते हैं। भगवती चरण वोहरा की पत्नी श्रीमति दुर्गावती संगठन के सभी साथी जिसे भाभी कहते हैं और सुशीला जिसे सभी दीदी कहते हैं , सफेद खादी से बने करतार सिंह के चित्र पर अपनी उंगली काटकर अभिषेक मतलब तिलककरती हैं और घटना क्रम इस तरह होता है कि-
11
तर्ज - दुनिया पागल कहण लगी
लाहौर शहर मैं आकै नै करी कमैटी त्यार।
ईन्कलाब का नारा लाया सै आजादी अधिकार-टेक
1 फोटू ले करतार सिंह का गेट पै बोर्ड लाया
  नाम रहैगा अमर सदा न्यूं जिन्दाबाद लिखवाया
  तेरी कुरबानी याद रहै यो सारा देश जगाया
  मानैंगे अहसान तेरा तनै रास्ता ठीक दिखाया
  तेरी उसे राही चालण का हमस ब नै करा विचार ।
2 भगत सिंह न्यूं कहण लाग्या या गुलामी की सै खाई
  कांकर माट्टी तैं नहीं भरै या बहुत घणी गहराई
  कुर्बानी बिन नहीं भरै या बात समझ मैं आई
  इसकी खातर जो त्यार खड़या वो हिन्द का खास सिपाही
  इसे खाई नै भरण की खात्यर श्हीद होया करतार ।
3 मजदूर और किसान कट्ठे हों करैं इन गोरयां की छुट्टी
  हम तीस करोड़ भारत आले ये गोरे सैं एक मुट्ठी
  ईन्कलाब कहै जामता बच्चा सबनै प्यादो घूंटी
  कुर्बानी बिन आजादी ना या बात नहीं सै झूठी
  करणा हो ना मरणा हो ईब ना उटै जुल्म की मार।
4 देश म्हारा और धरती म्हारी हम इस धरती के लाल
  लन्दन आले राज करैं क्यूं करो सारे भाई ख्याल
  गोरे पापी लूट कै खाग्ये म्हारे देश का माल
  गैर आदमी मजे करैं सैं मालिक बणे कंगाल
  रघबीर सिंह कह ले बांध मोरचा हम ंअसली पहरेदार।
वार्ता- भगत सिंह कहता है,‘ क्या हमें यह महसूस करने के लिए कि हम गुलाम हैं और हमें आजाद हो जाना चाहिये ’ किसी देवी ज्ञान या आकाशवाणी की आवश्यकता है? क्या हम किसी अज्ञात की प्रतीक्षा करेंगे , उसके इन्तजार में बैठे रहेंगेकि कोई देवी सहायता आ जाये या कोई जादू हो जाये कि हम आजाद हो जायेंद्य क्या हम आाजादी के बुनियादी सिद्धान्तों से अनभिज्ञ हैं? जिन्हें आजाद होना है उनहें स्वयं चोट करनी पड़ेगी। नौजवानों जागो , उठो हम काफी देर सो चुके। हमारे देशवासी क्या कर रहे हैं? पीपल की एक डाली टूटते ही हिन्दूओं की धार्मिक भावनाएं चोटिल होउठती हैं। ताजिये का एक कोना फटते ही अल्लह का प्रकोप जाग उठता है। कुछ लोग पवित्र पशु के नाम पर एक दूसरे का सिर फोड़ते हैं। यह धार्मिक अन्ध विश्वास और कट्टरपन हमारी प्रगति में बाधा है, ये हमारे रास्ते के रोड़े साबित हुए हैं, हमें इन से हर हाल में छुटकारा पा लेना चाहिये। जो चीज आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती उसे समाप्त हो जाना चाहिये।
 12
तर्ज - एक प्रदेशी ध् मेरा घरां जाण नै
सात समन्दर पार तैं आये म्हारा जीना करया हराम
तेतीस करोड़ ना दिय दिखाई ना आया कोये काम- टेक
1 धन धरती और मेहनत म्हारी कर रहा मोल बिराणा
  साल उगाही पाटै कोण्य खास हुया लाणा बाणा
  देव नै चाहिये नीचै आणा सुबह नही ंतो श्याम।
2 खादी मखमल बुणा करै था वो नाम था हीरा लाल
  दुनिया के म्हां जिकरा था मखमल पै करया कमाल
  हाथ काट कै करा हलाल यो दिया मेहनत का दाम।
3 रोड़ी का पुल त्यार कर दिया खान मिस्त्री मार दिया
   भगतां का भी नहीं रुखाला सबका कर संहार दिया
   यो मजदूर किसान सहार दिया लिये उज्ड़ गाम के गाम।
4  जुल्मी जोर जबर हो रहा क्यूं राम तलै ना आवै
    इसतै गैल छुटानी होगी जब किमै रास्ता पावै
     रघबीर सिंह जै दया चाहवै दूर तैं खड़या देखै राम।
वार्ता- नौजवान सभा की गतिविधियों पर अंग्रेजी सरकार की नजर रहती है। सरकार किसी बहाने भगत सिंह को गिरफतार कर संगठन को खत्म करना चाहती है। सन् 1927 में दशहरे के दिन रामलीला में किसी सिरफिरे द्वारा किये गये बम विस्फोट के आरोप में भगत सिंह को 29 मई 1927 को गिरफतार कर लिया जाता है परन्तु किसी भी तरह का सबूत ना मिलने पर 4 जुलाई 1927 को 60000 रु की जमानत पर छोड दिया जाता है।
   काकोरी केस के 18 महीने मुकद्यमा चलने के बाद 24 नौजवानों को सजा दी जाती है। रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खान,राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी,तथा रोशन सिंह को फांसी , सचिन्द्रनाथ सान्याल, आजन्म,मनमयनाथ गुप्त,14 साल, योगेशचन्द्र चटर्जी, मुकन्दी लाल, गोविन्द चरण कर , राजकुमार सिन्हा,सुरेश भटाचार्य को 7 साल , भूपेन्द्र नाथ सान्याल, रामदुलारे द्विवेदी और प्रेम कृष्ण खन्ना को 5-5 साल की सख्त सजा दी जाती है। इतना बड़ा झटका लगने के बाद क्रान्तिकारी आन्दोलन धीमा पड़ जाता है। चन्द्रशेखर आाजाद के प्रयास से 8 व 9 सितम्बर 1828 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खण्डहरों में बैठक करते हैं। इस मीटिंग में कलकता से अनुशीलन समिति, ढाका से युगान्तर गुट, पंजाब से गदर पार्टी व नौजवान सभा, उत्तर प्रदेश व बिहार से हिन्दुस्तान रिपब्लिक्स एसोशिएसन के प्रतिनिधि जयदेव कपूर, यतीन्द्रनाथ घोष, मनमोहन बनर्जी, सुरेन्द्रनाथ, कुन्दनलाल, ब्रहमदत, विजयकुमार सिन्हा, सुखदेव और भगत सिंह हिस्सा लेते हैं। सुरक्षा के लिहाज से आजाद को बुलाया नहीं जाता। इस मीटिंग में भगत सिंह भारत के बहुमत की आजादी के बारे में बताता है कि वे इस रास्ते से आयेगी जिस के लिये हम लगे हैं। सभी साथियों को समझाता है कि दुनिया की महान एवं समाज वैज्ञानिक हमारे देश के बारे में क्या सोचता है:-
दूर देश तै हवा चली वा म्हारे देश में आई
जोर जुल्म ने खत्म करण की पाग्यी ठीक दवाई -टेक
1. स्याणा माणस वो हौ से जो सोचे और बाहर की।
अपणा पेट तै दुनिया मरती किसै ने चिन्ता संसार की
ओली सौली हवा चालै पर वो कहै बात व्यवहार की।
टोटे नफे में रहै बराबर जो कहै बात विचार की।
जीवण का ढंग ठीक बतादे सही बतादे राही-1

2. इसे इसे माणस थोड़े हौ से जिनने यो ज्ञान बताया।
कै कुदरत का दस्तूर एक ना छोटा बड़ा बणाया।
करके खोज सामणे ल्यादी जिनने समझणा चाहया।
यो संसार खड़ा मेहनत  पे जीवण का राह दिखाया।
मेहनत बिना ना कुछ दुनिया में जो कर रहे होण बुगाई-2

3. सारा ज्ञान खोल के धर दिया सारे माणस एक समान
मेहनत करके आगे बढ़ग्ये जो पाग्ये फालतू ज्ञान।
ज्ञान का फायदा होणा या सबनै, आड़ै आकै बिगड़ी तान।
न्यारे सुर में गावण लाग्ये वे माणस बणे बेईमान।
बिना कमाये आधा चाहिये न्यूं दी खोद जुल्म की खाई-2

4. जिसकी होसे नीती माड़ी घणे ढाला के खेले खेल
धर्म का ठेका ले कै चालै भाई चारा कर ले गेल।
जात गोत और धर्म पै इन्सानियत नै करदे फेल
अपणा मतलब काढ़ण खातर करके जग में धक्कम पेल।
अपणा मारै छांह में गेरै जो हो सागी भाई-4

5. दूर देश में पैदा हो के म्हारे देश का कह दिया हाल।
सब ढाला की बात सोच के चोगरदे का करके  ख्याल
अंग्रेजां की लूट के कारण भारत देश बणया कंगाल।
बिन आजादी पार पड़ै ना चाहे लागज्यां कितने साल।
दुख के बादल न्यूं छंटै बणे मजदूर किसान सिपाही-5

6. अंग्रेज आड़े तै चाले जांगे फेर कांग्रेस की बणै सरकार
वे ही सारी नीति रहेंगी सारा नक्शा दिया वार।
मजदूर किसानों तै धौखा होगा दूर खड़े देखें लाचार।
असल आजादी ल्यावण खात्यर हटके होगी मारो मारे।
रघबीर सिंह सै ठावें झण्डा जब छंटै गर्द और काई-6

वार्ता: भगत सिंह वर्तमान राजनीति के बारे में बताता है कि आज कांग्रेस के नेता जिस आजादी की बात करते है उससे मजदूर और किसान का भला नहीं होगा क्योंकि यह पार्टी भारत के पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व है। यह अपने लिये कुछ सीमित हितों के लिये लड़ रही है परन्तु भूख से तड़पते हाड-मांस के वो पुतले जो गर्मी-सर्दी में बिना छत के रोजाना नया जन्म लेत हैं, उनके बारे में सोचना हमारे संगठन का काम होगा और हमें उन लोगों को समझाना होगा कि कमेरे वर्ग के एकजुट किये बिना यह राजनीतिक आजादी सिर्फ ढोंग होगी।

दिन रात कमा के भूख बैठा इस बात का करियो ख्याल
कोये मौज करै सै रंग महलां में क्यूं घणे फिरे कंगाल-टेक

पौ का पाला जेठ दोफारी खेतां म्हा पड़ा किसान।
सिर पै छात ना गात पै कपड़ा ना देही में रह रही ज्यान।
सारा कुणबा लाग्या रहै फैर भी बाजे कोन्या तान।
सारे जग नै देवे खाण नै खुद की जिन्दगी हुई बिरान।
चौबीस घण्टे रहै बेदना यो हो रहा सै बुरा हाल।

एक मजदूर कमाऊं सै जिसके तन पै नहीं लंगोटी,
घर में मूसे कला करैं सैं ना भूखां नै रोटी,
दिन और रात कमाये जा सै फर भी सुणता खोटी,
गर्मी-सर्दी बणी बराबर या बणी मुश्किल मोटी,
जै एका करण की सोचै तै या करदे पुलिस हलाल।

खान खेत और कारखाने में धन पैदा हो सै भाई,
इनते न्यारी दुनिया के म्हां और ना जगहां बताई,
मजदूर किसान कमावै धन पर लेज्या लूट कसाई,
जब तक हो एक लाश नहीं म्हारी कोन्या हो सुणाई,
कष्ट कमाई म्हारी पै दिया गैर भ्रम का जाल-3

बढ़िया कपड़े रहण नै कोठी कुछ माणस मौज उड़ावै सैं,
काजू किसमिस और मिठाई जी भर-भर के खावै सै,
खुशबू आले तेल और सावण कई तरां का लगावै सैं,
मजदूर और किसानों नैं ये मूर्ख गंवाए बतावै सैं,
रघबीर सिंह से पूत कमाऊ ईब समझ गये या चाल-4

वार्ता - इस बैठक में 2 दिन तक विचार विमर्श के बाद संगठन के साथ समाजवादी शब्द जोड़ कर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ नाम दिया गया। प्रधान चन्द्रशेखर आजाद को बनाया जाता है। एक सेना का गठन भी किया जाता है जिसका सेनापति आजाद को ही बनाया जाता है। मजदूरों और किसानों को संगठित कर सता पर कब्जा करना जरूरी है क्योंकि लार्ड रीडिंग या लार्ड इरविन के स्थान पर तेज बहादुर या पुरूषोतम दास ठाकुर के आने से आम जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिये हमारे संगठन का मकसद एक सोशलिस्ट या कम्यूनिस्ट समाज की स्थापना करना है। भारत के दौरे पर आया साइमन कमीशन जब 30 अक्तूबर 1928 को लाहौर आता है तो लाला लाजपत राय के नेतृत्व के कमीशन को काले झण्डे दिखाये जाते हैं। इस प्रदर्शन में नौजवान सभा के सदस्य अगली कतारों में होते हैं और इस तरह की घटना घटती है। -
साइमन के आवरण की सुणकै पूरी कर ल्यो त्यारी,
लाहौर शहर में आके कटठे हो ग्ये क्रांतिकारी- टेक

चौगरदे के जिकरा सै करणा सै बाइकाट,
के जाणां हम साइमन नै फिरै तीन सौ साठ,
क्योंकि करणा चाहवै छांट-क्यूं अक्कल मारे म्हारी।

नौजवान सभा के साथी थे वे सब तै आगै चाले,
लाला जी सै नेता सबकै हाथां में झण्डे काले,
चारों ओड़ नै फौज रिसाले-बर्मा मिलिट्री न्यारी-2

दसमा महीना तारीख तीस वो कमीशन लाहौर में आया,
काले झण्डे देख चौगरदे साइमन भी घबराया,
लाठी चार्ज करवाया, उस जनता उपर भारी।

पुलिस मिलिट्री कही थी उड़ै तुरन्त मुकदमा त्यार करया,
लाला लाजपत राय उपर सबतै पहलम वार करया,
कह रघबीर सिंह त्यौहार करया, उड़ै पहलम वार करया।

वार्ता - इस विरोध प्रदर्शन पर पुलिस लाठीचार्ज करती है। लाला लाजपतराय पर इतनी लाठियां पड़ती हैं कि 17 नवम्बर, 1928 को उसका देहान्त हो जाता है। इस मौत से दुखी देशबन्धु चितरंजन दास की धर्मपत्नी श्रीमती बासन्ती देवी कहती है, ‘‘है कोई माई का लाल जो लाला जी की मौत का बदला ले कर दिखाये? क्या इस देश के नौजवानों का खून जम गया है?’’

कोये सै माई का लाल - जो आज यो फर्ज पुगादे-टेक

होया अनीली का पर्दाफाश-ईब ना सै न्याय की आश।
इस लाश का करके ख्याल, जो बदला ले दिखादे

के खून का होग्या पाणी-क्यूँ होगी सबकी बंद वाणी
पिछाणी जिनने गौरां की चाल, इनके मार-मार के ताहदे-2

गई लाग कालजै चोट-थम किस तरियाँ लोगे ओट
जै खोट का नहीं सै मलाल, वो के जाणेगा कायदे-3

रघबीर सिंह जै ना बिमारी काटी-हो ज्यागी रे रे माटी।
ना डटै डाटी उठती झाल, कोये या बात ठिकाणे लादे-4

वार्ता - नौजवान भारत सभा के सदस्य मीटिंग करते हैं कि इस चुनौती को हमें स्वीकार करना चाहिये पर कुछ साथी कहते हैं कि लाला लाजपत राय हमारे तो खिलाफ ही थे। ऐसे आदमी के लिये संगठन को दांव पर नहीं लगाना चाहिये। काफी बहस के बाद बदला लेने का फैसला किया जाता है। चन्द्रशेखर आजाद को लाहौर बुलाया जाता है। रात को तैयारी में मीटिंग करते हैं तो आजाद कहता है अब यह बताने का समय आ गया है कि अब विरोध ही नहीं हम बदला भी लेंगे। साथियों को समझाता है कि -

बसन्ती नै ऐलान करया के कहण पुगाणा हो
खून का बदला नहीं लिया तो जब्र उल्हाणा हो - टेक

म्हारे बिना ना और रूखाला खड़े देखें भारतवासी
सन सतावन की दस मई  नै लाग्यी थी  आग जरा सी
कलकता, रेवाड़ी, दिल्ली और जा पहुंची थी झांसी,
अंग्रेजाँ के जुल्म के कारण लाल सड़क बणी हांसी
ईब मिर्जा मुनीर और हुक्मचंद का मोल चुकाणा हो-1

देश के फपर कुर्बानी देंगे वे वीर क्रांतिकारी
मंगल पांडे, तुलाराम वा लक्ष्मीबाई नारी।
उदमीराम का गात साल दिया आवाज ईब तक आ रही
मंगल खां और कदै खां ज्यूं करके दिखाणा हो-2

वासुदेव बलवन्त फड़के होये चाकेकर भाई
मदनलाल धींगड़ा नै भी हंस के नै फांसी खाई
खुदीराम करतार सिंह, सत्युन्द्र और कन्हाई,
रामप्रसाद संग अशफाक उल्ला ये सच्चे हमराही
राजेन्द्र लाहिड़ी, रोशन सिंह ज्यूं फांसी खाणा हो-3

बहादुरशाह वीर होया जिनै देष पै लाल खपाये
रंगून जेल में रह्या तड़फता न उल्टे कदम हटाये,
फारूखनगर और नवाब लौहारू फांसी पै लटकाये,
रोहनात, मंगाली, भाटल पुटठी ये गाम घणै सताये
आग लगा के गाम फूंक दिया म्हाये लाणा-बाणा हो-4

सोने की चिड़िया कहा करें थे गौरां नै दिन फेर दिये
अन्न -धन के भण्डार लूट के बणा कति टुक टेर दिये,
आजादी के मांगण आले मार-मार के गेर दिये,
ईब सबका बदला लेणा सै जो लाजपत ज्यूंकर ढेर दिये
रघबीर सिंह यो जब्र भरोटा पड़ै, हमनै ठाणा हो-4

वार्ता - योजना के अनुसार हत्या का बदला लेने के लिये चन्द्रशेखर आजाद भगत सिंह, राजगुरू, जयगोपाल और महावीर सिंह दिनांक 17 दिसम्बर 1928 को सांय 4.30 बजे पुलिस कार्यालय के पास मोची लेते हैं। पुलिस अधिकारी मोटरसाइकिल पर गेट की तरफ बढ़ता है। महावीर सिंह के ईशारा मिलते ही राजगरू गर्दन में गोली मारता है। साथ ही भगत सिंह भी 4-5 गोली मारता है। सभी साथी भाग जाते हैं। अर्दली सरदार चन्नण सिंह उनका पीछा करता है। चन्द्रशेखर उसे गोली मारकर ढेर कर देता है।
18 दिसम्बर 1928 को लाहौर में दीवारों पर लाल पर्चे चिपकाये मिलते हैं जिन पर लिखा होता है, ‘‘जी.पी.साण्डर्स’’ जैसे एक साधारण पुलिस अफसर के अपवित्र हाथों करोड़ों जनता के आदरणीय नेता का खून सारे देश का अपमान था तथा इस कलंक को धोना भारतीय युवकों का परम कर्तव्य था।
हिन्दुस्तान शोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी। आज दुनिया जान गई है कि भारतीय जनता अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये हर कीमत चुकाने के लिए तैयार है। साण्डर्स को खत्म करते समय हमें जिस एक आदमी को खत्म करना पड़ा, उस के लिये दुख है, लेकिन वह उस अमानुषिक और अन्यायपूर्ण व्यवस्था का एक पुर्जा था जिसे नेस्तानबूद (खत्म) करना ही पड़ा। हमारा लक्ष्य ऐसी क्रांति के लिये काम करना है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य की लूट, दमन, अन्याय का खात्मा कर देगी।
-बलराज (आजाद संगठन के नाम)
प्रधान
हिन्दुस्तान शोसिलस्ट रिपल्किन एसोसिएशन
साण्डर्स हत्या के बाद भगत सिंह अपने माता-पिता को पुत्र लिखता है कि आपकी दी गई शिक्षा के पहले इम्तिहान में हम पास हो गये हैं:-

भगत सिंह में लिखण खात्यर कागज कलम उठाई।
इन्कलाब जिन्दाबाद लिख कर दी शुरू लिखाई-टेक।।

पहलम लिख्या माता-पिता के चरण शीश मुवाणा,
सब कुणबे की लिखी नमस्ते जो घर में याणा स्याणा,
फैर लिख दी मत चिन्ता करियों मत दिल में घबराणा,
जाण सी राह चाल पड़ै ना उल्टा कदम हटाणा,
बड़े-बड़या कै शीष नुवाणा चाचे, ताऊ और भाई।

थारी शिक्षा अनुसार सीख लिया नहीं किसे तै डरणा,
तनै सौ जन्मा के समान बताया एक बै देश पै मरणा,
सेवा करके इस भारत की जगत जहान सै तिरणा,
गादड़ भभकी तै डरै नहीं म्हारा शेरां का सै खरणा,
बिना आजादी चैन मिलै ना या कसम देश की खाई-2

तनै बताई पाग्यी राही चाल्या तेरा सपूत री,
आर्शीवाद तेरा मेरे सिर पै हाथ बणे मजबूत री,
सरकार फिरंगी तोड़ेगें जो बड़ग्यी बण कै भूत री,
गौरे पापी काढ़े बिन म्हारे ना आंव कति सूत री,
खून का बदला खून हौवे तेरी आग्यी काम पढ़ाई-3

लाला जी का बदला ले लिया कति करी ना वार
सत्रह दिसम्बर सन अठाइस नैकरया मुकदमा त्यार,
लाहौर शहर के बीच में होया होली कोड त्यौहार,
रघबीर सिंह न्यूं चिटठी लिख दी खुशी गात में बेशुमार
जग में ऊंचा सिर तेरा न्यूं होग्यी सफल कमाई-4


वार्ता - साण्डर्स को मारने के अगले ही दिन शहर से बाहर निकलते हैं। जबकि सारे शहर की नाकेबंदी कर दी जाती है। क्रांतिकारी किस तरह बाहर निकलते हैं:-

पकड़न खातिर पहरा ला दिया नाकेबंदी करवाके,
लाहौर शहर सै चाल पड़े थे वे नकली भेष बणाके - टेक

दुर्गा भाभी नै साथ ले के चाल्या भगत सिंह,
बीर मर्द का भेष बणाया बेटा लिया सचिन्द्र संग,
ना चेहरे पै चिन्ता थी गात के म्हां भरा उमंग,
टेशण उपर आगे सारै देख शहर का ढंग,
मेम साहब बणी, दुर्गा भाभी न्यारा ढंग बणाकै।

मेम साहब का गौरा मुख जाणु ले रहा चांद उजाला,
बत करै थी हंस-हंस के नै ना बोलण का टाला,
चौकस हो कै चाल पड़े कदे होज्या खाण्ड का राला,
टेशण तै जब गाड़ी चाली होये बचण की ढाला,
खड़े सिपाही दरवाजे पै वे बात करें धमकाके-2

भगत सिंह भी भेष बदल कै बणया अंग्रेज अधिकारी,
पेंट कोट और टाई चश्मा चेहरे पै रौनक न्यारी,
राजगुरू नै नौकर बण कै करी चालण की त्यारी,
कति अन्देशा मन में न था खुशी गात में छा रही,
चन्द्रशेखर गया लिकड़ शहर तै आख्यां में धूल बगाकै-3

जाल तोड़ के लिकड़ गये वे होग्ये थे आजाद,
अंग्रेजां की पहरेदारी सब कर दी थी बरबाद,
खून का बदला खून लिया यो देश करेगा याद,
सरे देश में दिया सुणाई इन्कलाब जिन्दाबाद,
रघबीर सिंह कह खुशी मनाई कलकते में जाके-4

वार्ता - 21 दिसम्बर को सभी क्रांतिकारी अलग-अलग ढंग से लाहौर से निकल जाते हैं। भगत सिंह दुर्गा भाभी के साथ और राजगुरू उनके नौकर के रूप में कलकता सुशीला दीदी के पास पहुंच जाते हैं। उन्हीं दिनों बम्बई के कपड़ा मजदूर हड़ताल करते हैं तो क्रांतिकारी मजदूरों के समर्थन में संदेश भेजते हैं:-

कटठे हो ल्यो मजदूरों ना ईब देगी काम मुलायमी,
मौत भली उसी जिन्दगी तै जड़ै भरणी पड़े गुलामी - टेक

सारे देश में रूक्का पड़ग्या चौगेरदे नै माच्या शोर,
राज का तख्त हालता दिखे रोला होग्या चारों ओर,
माल मुफ्त का खावण आले सबकी साहमी बणग्ये चोर,
वो मिल का मालिक भी रोवै सै मजदूराँ का देख्या त्यौर,
ईब हो के गैल किसानां नै दी गेर राज में खामी-1

तालाबंदी काम राज का फेर उल्टै धमकावै,
आज कमेरा भूखा बैठा कुछ पापी मौज उड़ावै,
वे बंगला में ऐश करें हम दिन और रात कमावै,
इनने चाहिये पान मिठाई आड़ै बासी भी ना थ्यावै,
म्हारी कष्ट कमाई नै ये लेगे लूट हरामी-2

पुलिस और गुण्डे मजदूरां नै नौच-नौच के खाते,
रिश्वत खोरी, गुण्डागर्दी ये कति नहीं शरमाते,
लाला जी नै सैल्यूट मारते कमेरयां नै धमकाते,
हो अफरातफरी लूट मार हम सरकार ईसी ना चाहते,
लड़ों लड़ाई खून बहादयां नहीं थमेगी थामी-3

ट्रेड यूनियन मजदूरों की करणा चाहवै भंग दखे,
हक मांगे ते जेल मिलै घणे बणा दिये तंग दखे,
ठालो झण्डा लाल हाथ में हक मांगण का ढंग दखे,
बम्बई शहर तै शुरू करो सारे हिन्द में जंग दखे,
रघबीर सिंह कह लड़ना होगा बिल्कुल आहम्मा-साहमी-4

वार्ता- सरकार हड़ताल, धरना जलूसों पर पाबन्दी के लिये राष्ट्रीय असैम्बली में दो बिल औद्योगिक सुरक्षा अधिनियम और आवश्यक सेवा, कानून ‘औद्योगिक सुरक्षा अधिनियम और आवश्यक सेवा कानून’ पास कर के मजदूरों की हड़ताल को खत्म करना चाहती है। क्रांतिकारी सलाह मशिवरा करते हैं कि जब बिलों पर बहस हो बम धमाका कर विरोध किया जाये फिर गिरफ्तार हो कोर्ट को एक मंच के तौर पर प्रयोग किया जाये ताकि अखबारों के जरिये हमारा कार्यक्रम आम जनता तक जाये। इसके लिये विजय कुमार सिन्हा तथा बटुकेश्वर दत को तैयार किया जाता है। जब सुखदेव को पता चलता है तो वह भगत सिंह को धमकाता है कि तुझे पता है इस काम को तेरे बिना कोई नहीं कर सकता तो तूने अपना नाम क्यों नहीं दिया? भगत सिंह कहता है भाई मैं तेरी बात के लिये अब भी तैयार हूँ-

ठाडु बोल क्यूं धमकावै तूं बात खोल के धरदे,
कौणसी गलती हुई मेरे तै दिये हटा भ्रम के परदे-टेक

वा बात कौण सी फहग्यी - मेरी कसूर कड़ै सी रहग्यी,
कौण सी बुर्ज किले की ढहग्यी खोल बात नै पेट भरदे-1

तेरे सुण-सुण के नै बोल - भाई गया कालजा डोल,
सब बातां की हो ज्या सोल, कद दे जौ आ रही सै हिरदे-2

तनै करी मेरे तै आश-खड़ा बणा हुक्म का दाम,
तेरा खोऊँ ना विश्वास, तेरी जगहां बदले में सिर दे -3

मनै पाटया कोन्या बेरा - खोट बतादे के सै तेरा,
रघबीर सिंह हो उज्जड़ डेरा, ना तै गाम गोचरी कर दे-4

वार्ता - सुखदेव की बातों से दुखी हो भगत सिंह आजाद से कह कर फिर से संगठन की मीटिंग बुला कर असैम्बली हाल की कार्यवाही में बटुकेश्वर दत के साथ अपना नाम रखवा लेता है। अप्रैल 8, 1929 जब एसैम्बली में कार्यवाही के लिये जाना होता है तो भगत सिंह ने अपने नये जूते और घड़ी जो गदर पार्टी के यौद्धाओं द्वारा फरवरी 1915 में गदर का समय निर्धारण करने के लिये खरीदी थी, किन्तु उस प्रयास के असफल रहने के बाद रास बिहारी बोस ने यह घड़ी सचिन्द्र नाथ सान्याल को दी। सान्याल ने यह घड़ी भगत सिंह को सौंप दी, भगत सिंह ने उसे जयदेव को भेंट कर दी।
8 अप्रैल 1929 को योजना के अनुसार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत असैम्बली की दर्शक दीर्घा में पहुंच जाते हैं। ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट व आवश्यक सेवा कानून,  इन दोनों कानूनों को भारतीय प्रतिनिधि बहुमत से निरस्त कर चुके परन्तु सर जार्ज शूस्टर विशेष अधिकार से पास करने की घोषणा करने के लिये उठता है तो भगत सिंह गृहसचिव की बैंच के पीछे बम फैंकता है, बटुकेश्वर पर्चे फैंकता है। दोनों नारे लगाते हैं, इंकलाब जिन्दाबाद, समाजवाद जिन्दाबाद। इन पर्चों में लिखा होता है कि - बहरों को सुनाने के लिये बहुत ऊंची आवाज की जरूरत होती है। राष्ट्रीय दमन और अपमान की उतेजना पूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गंभीरता को महसूस कर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है।
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस संसद के पाखण्ड को छोड़कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जाकर जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरूद्ध क्रांति के लिये तैयार करें। हम मनुष्य जीवन को पवित्र मानते हैं और ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिससे प्रत्येक व्यक्ति को स्वतत्रता का अवसर मिले। हम इन्सान का खून बताने की अपनी विवशता पर दुखी है परन्तु क्रांति द्वारा सबको सम्मान स्वतंत्रता और मनुष्य के शोषण को समाप्त करने के लिये क्रांति में कुछ में कुछ न कुछ अनिवार्य है।
ईन्कलाब-जिदांबाद
बलराज (चन्द्रशेखर आजाद)
कामाण्डर-इन-चीफ
पुलिस के सिपाही दोनों को गिरफ्तार करने आते हैं भगत सिंह उन्हें धमकाता है और कहता हैः-
थारे कैसे पापियां नै खो दिया हिन्दूस्तान।
जुल्मी मतना दिखावै श्यान - टेक
1. जन्म भूमि आजाद हो तो सुख कैसा डेरा हो सै।
गुलामी की हवा भी माड़ी ना कोये रहण बसेरा हो सै।
हुक्म सुण्या और चाल पड़ा तनै नहीं बात का बेरा हो सै।
भारत देश गुलाम बणा यो अंग्रेजां के सिर पै ताज।
तेरे जैसे नौकर मिलग्ये करण खात्यर देश पै राज।
इनकी खात्यर त्यार मरण नै हटज्या परे नै धोखेबाज।
भारतीवासी देशद्रोही यो अंग्रेज बण्या बलवान - 1
2. दो आना की करै नौकरी लोगां नै तंग करण लाग्या।
नहीं शरम का खोज तेरे हो बेशर्म फिरण लाग्या।
अंग्रेज तनै शाबास देंगे घमण्ड में सहम भरण लाग्या।
बिन आई में मरया जागा थोड़े से दिन रहग्ये शेष।
वो दिन नेड़े आरहा सै अंग्रेज छोड़ के भाजैं देश।
फेर सोचले मौका सै दखे पाछै कोन्या चालै पेश।
भाईयां उपर जुल्म करै तू कति बणकै शैतान-2
3. म्हारे देश के कारीगर सब जेलां के म्हां दिये डार।
हीरालाल जुलाहा और खान मिस्त्री दिये मार।
दीन ईमान बच्चा कोन्या ईज्जत होई तार-तार।
म्हारे देश की ईज्जत लूट रही क्यूं बैठा सै करले होश।
जीणा मुश्किल होग्या भाई सबकी दई आत्मा मोश।
देश भलाई करले भाई छोड़ दे ये सारे दोष।
स्वार्थ ने दे छोड़ ईब तू दिये छोड़ अभिमान-3
4. कितने देगे कुर्बानी हंस-हंस कै ज्यान खपाई।
हर हालत में आजादी हो कसम मरण की खाई।
तूं भी छोड़ नौकरी गौरां की करले देश भलाई।
मजदूर किसान मोर्चे पै तूं कर रहा गद्दारी रै।
एक दिन वो भी आवैगा तेरी खाल तार ले सारी रै।
मेहनतकश की म्हारे देश में फौज बणी सै न्यारी रै।
रघबीर सिंह इतिहास पढ़ै बिन मिलै नहीं किते ज्ञान-4
वार्ताः- भारतीय सिपाही पीछे हट जाते हैं। सार्जेन्ट हेरी दोनों को गिरफ्तार करता है। इन दोनों की गिरफ्तारी के बाद बहुत से साथी गिरफ्तार कर लिय जाते हैं। परिस्थितियों से चन्द्रशोखर आजाद थोड़ा सा निराश होता है, सुशीला दीदी पूछती है भाई आज कुछ उदास हो? आजाद कहता है कि दीदी मैं कितने ही नौजवानों को लड़ाई के लिए तैयार करके कितनी मांओं के बेटों को, बहनों के भाई, सुहागिनों के सुहाग छीनता हूं और एक-एक कर फांसी के फंदे पर भेजता हूं या गोली के सामने कर देता हूं और दोबारा से नये साथी तैयार करने निकल पड़ता हूं। और जब मैं एकेला होता हूं तो यह सारी सोच कर दुखी हो जाता हूं। सुशीला दीदी पूछती है और चन्द्रशोखर आजाद बताता है किः-
सुशीला - मैं पूछूं संू भाई मेरे तनै कौण सी चिन्ता खा सै।
आजाद - के पूछेगी बाहण सुशीला छाती के म्हां घा सै-टेक
1. सुशीला - या तै तूं भी जाणै सै मैं बाहण नहीं मां जाई रे।
पर धर्म बाहण हो सगी बराबर तूं मेंरा बड़ा भाई रे।
कौण सी बात कर दर्द हुआ तनै ना खोल बताई रे।
ल्हको करै क्यूं खोल बतादे जो तेरे मन में आई रे।
कौणसी बात का दर्द होया तनै क्यू ंना खोल सुणाई रे।
आज मेरे तै बात छुपावै यो बात कौण सा न्याय सै -1
2. आजाद - भाई बंध और मात पिता सब छोड़या कुटुम्ब कबीला।
देश की खात्यर दा पै लाया ना किसे बात का गिला।
या तै तूं भी जाणै सै ऐ गौरां का जबर वसीला।
बिन कुर्बानी आजादी ना सुणले बहाण सुशीला।
फांसी हो ना तै काला पाणी जो दरिया बीच जगहां सै - 2
3. सुशीला - तनै बताया हमनै सीखा लिया बसन्ती बाणा।
किसे बात में कसर ना छोड़ैं ना तेरे सिर उल्हाणा।
अन्न धन के भण्डार भरै पर दुभर पीणा खाणा।
मालिक थे वे नौकर होग्ये कर रहा राज बिराणा।
तेरे बताये मालूम पाटी के आजादी का भा सै - 3
4. आजाद - ज्यान हथेली पै धरकै नै जो संगठन में आयेे
मनैं पाठ पढ़ाके क्रांति आला लड़ण नै त्यार बणाये।
विधान सभा में बम गेरण नै दोनूं मनैं खंदाये।
कै फांसी कै काला पाणी मौत के मुंह पहंुचाये।
कह रघबीर सिंह न्यूं सोचूं के छुटावण की जो राह सै- 4
वार्ता:- सुशीला दीदी आजाद के कहे अनुसार भगत सिंह और बटेकेश्वर दत्त से मिलने जेल जाती हैं और आजाद का संदेश कि बाहर की चिन्ता ना करना अपना काम पूरा ध्यान से करना और कहती हैं कि:-
सुशीला का भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त से कहना
तर्ज: सावन
तुम सुणियो रे मेरे बीर, बात कहूं सुणों ध्यान तै-टेक
1. भाई ने भेजी फेटण आई थारी खात्यर यो बेरा ल्याई।
भाई रे दुखां में सांझा सीर, लड़ेंगे आन बान और श्यान तै - 1
2. सरे कै सै चर्चा थारी, लोगों कै सै चिन्या न्यारी।
रेे थारी अदालत बणी जागीर, करदो तोड़ खुलाशा ब्यान तै - 2
3. भाई पहरेदार का पहरा सै यो दर्द कसूता गहरा सै।
फहरा राज सै बे पीर म्हारा पाला पड़ रहा बेईमान तै-3
4. जुल्मी का करके पर्दाफाश थम नया लिख दयो इतिहास।
ना कदे उदास होवै रघबीर ईन्कलाब सुणेगा हर जुबान तै-4
वार्ताः- सुशीला दीदी की बात सुन भगत सिंह कहता है दीदी संगठन ने हमें जो जिम्मेदारी दी है हम उसे हर हाल में पूरी करेंगे और यह विश्वास भी दिलाते हैं कि हम कामयाब होंगे और कहता है कि हमारी तरफ की चिन्ता ना करना -
भगत सिंह का सुशीला को कहना
चिन्ता मतना करै बाहण हम आलैं तावल करके।
गौरे पापी अंग्रेजों के जुल्म खड़्डे में भरके - टेक
1. या खत्म हो राजशाही मिल के खड़े हों जब लोग लुगाई।
ईब आर पार की छिड़ी लड़ाई चाले ज्यान हथेली पै धरकै-1
2. न शान्ती देगी काम रहो लागे सुबह और श्याम।
म्ंजिल पै जाके करै आराम ना बीच में बैठे घिरकै-2
3. ईब ईंकलाब हो जिंदाबाद इस राज की आली मियाद।
हर हालत में देश आजाद ना कदम हटे ईब मौत तै डरकै-3
4. थम एक बात दिनल में धरियो जो रहज्या उसने पूरा करियो।
रघबीर सिंह कै दुख नै हरियो जब धजा लाल शिखर में करकै-4
वार्ता:- दिनांक 3 मई 1929 को सरदार किशन सिंह वकील असफ अली के साथ भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त से मिलने आते हैं ताकि इस केस के बारे में सलाह मश्विरा किया जा सके। परन्तु ये दोनों कहते हैं कि इस स कोर्ट में यह नहीं कहेंगे कि हमने बम नहीं फैंके। बार-बार समझाने के बाद भी अपने ब्ययान नहीं बदलते। दिनांक 6 जून 1929 को सैशन जज लियो नाईमिडिल्टन की अदालत में भगत सिंह और बटुकेश्वर ब्यान लिखकर वकील को देते हैं, बम फैंकने से हमारा मकसद किसी को मारना नहीं था बल्कि भारतीय जनता की आवाज अंग्रेजी हकूमत के बहरे कानों तक पहंुचाना था। मजदूर या उत्पादक संसार का सबसे महत्वपूर्ण अंग होते हुए भी लूटेरे उनकी खून पसीने की कमाई को हड़प जाते हैं। दूसरों के लिए अनाज पैदा करने वाला किसान स्वयं अपने परिवार के लिये अनाज प्रप्त करने वाला किसान स्वयं अपने परिवार के लिये अनाज प्राप्त करने के लिए तड़पता है। कपड़ा बुनने वाला संसार की मण्डियों के लिये कपड़ा तैयार करता है, लेकिन वह अपना तथा अपने बच्चों का शरीर तक नहीं ढक सकता। मिस्त्री लोहार जो शानदार महलों का निर्माण करते हैं खुद गन्दी झोपडियों में रहते हैं। सिर्फ अपने मनोरंजन के लिये बहा देते हैं। जज भगत सिंह को बहकाने की कोशिश करता है कि तेरे से पहले और भी क्रांतिकारी आये जो सब खत्म हो गये, तूं अपना घर बसा तो भगत सिंह जवाब देता है:-
जज-भगत सिंह के सवाल जवाब
तर्ज - यूं ही दिल ने चाहा था रोना
जज - भगत सिंह ले मान काहे की तेरी बालक उम्र नादान
भगत सिंह - के समझावै रास्ता टोहले ईब जाग्या हिन्दूस्तान - टेक
1. राजनीति में आकै नै क्यूं सोचे ज्यान खपाणी।
देश की खात्यर मरज्या तै के मरणे में हाणी।
मूर्खता में मरग्यी था वा झांसी आली राणी।
मेरी रगां में खून शेर का मतना समझै पाणी।
कोन्या आणी जाणी रै तू बात मेरी ले मान।
ईब उल्टा कदम हटै कोन्या चाहे ईब लिकड़ज्या ज्यान -
2. बिन आई में क्यूं मरता तनै हट हट कै समझाउं।
या नहीं पढ़ाई मेरे काम गुण आजादी के गाउं।
तेरे देश की जनता मजे करै सै चाल तनै दिखाउं।
थारी चाल नै जाणूं सूं मैं नहीं बहका में आउं।
तेरे मात पिता भी बाट देख रहे सुखी अगत बेल संतान।
जन्म भूमि पै अर्पण सै मेरा ईब होवै इम्तिहान - 2
3. काले पाणी तारा जा ओड़ै देखे मुहं नै ठाकै।
भारत की आजादी खत्यर राजी फांसी तक भी खाकै।
भगत सिंह तेरी मर्जी सै मैं छक लिया सूं समझाकै।
नहीं जरूरत तेरी शिक्षा की दिये लन्दन में जाके।
तनै पाछे दुख पाणा होगा खो ज्यांगे अरमान।
जो करण सै वो करले तूं मतना धरै अहसान- 3
4. बड़े-बड़े गये ज्यान तै मारे कै मिलगी आजादी।
हम भी न्यूऐ मर ज्यागें ना देखी जा बर्बादी।
इन बातां में के धर्या सहम करवाले ब्याह शादी।
यो सारा देश मेरा कुणबा सै सूरत देश पै लादी।
तनै उम्र कदै की सजा मिलै जब आच्छा आवै ज्ञान।
कह रघबीर सिंह चाहे फांसी लागे हो ना बंद जुबान - 4
वार्ताः- 12 जून 1929 को दोनों को आजन्म काले पानी की सजा दी जाती है। भगत सिंह को मियांवाली तथा बहुकेश्वर दत्त को लाहौर सैन्ट्रल जेल में रखा जाता है। गंदा खाना व अलग-अलग रखने के विरोध में 15 जून 1929 से दोनों भूख हड़ताल शुरू कर देते हैं। इन्हीं दिनों संगठन के 28 साथी गिरफ्तार कर लिये जाते है। जून की 25 तारीख को भगत सिंह भी लाहौर सैन्ट्रल जेल में लाया जाता है जहां उेस जतिन दास, अजय घोष, शिव वर्मा, गया प्रसाद, किशोरी लाल, देशराज, फणीन्द्र नाथ घोष मिलते हैं। कांग्रेज, मुश्लिम लीग और हिन्दू महा सभा के लोग अपने अपने हिसाब से जनता में भ्रम डाल रहे हैं। जिससे अंग्रेज साफ बच जाता है। अब असल आजादी के लिये लड़ना सिर्फ हमारे ही जिम्मे बचा है और देश संगठन व पार्टियों की तात्कालीन राजनीति के बारे में बतात है।
लाल किले पै धजा फरकती लाल निशान चाहिये सै।
मजदूरां के संग में राज तख्त पै किसान चाहिये सै - टेक
1. सन् अठारह सौ सत्तावन में एक जंग छिड़ी थी भारा।
बहरमुपर में मंगल पाण्डे जिसने दिया था ललकारा।
दसभई नै अम्बाला में एक लाग्या था हुकांरा।
फेर मेरठ के म्हां वीरों ने दिया आजादी का नारा।
एक बणा था भारत सारा उसा धमासान चाहिए सै - 1
2. कुछ दिन पाछै ब्यौंत बिगड़ग्या पासा पड़ग्या औला।
हटके फेर गुलाम बणे होगा और ढाल का रौला।
अंग्रेजों ने सलाह बणाके खड़ा करया एक टौला।
फेर महात्मा गांधी आकै बोल्या मैं करदयूं सब सौला।
एक लंगोटी धार के चौला ना ईया भगवान चाहिये सै - 2
3. कांग्रेस नै दिया था नारा हम कष्ट करौगे दूर।
अहिंसा का नारा देके दिया जाल कसूता पूर।
खेती बाड़ी करने आले चाहे हो मजदूर।
सहज-सहज समझण लागे ना गौरां का कसूर।
म्हारी छाती के म्हां बण्या नासूर इसका निदान चाहिये सै - 3
4. हिन्दू सभा और मुश्लििम लीग बोलै एक बाणी।
कांग्रेस भी इनकी गौल्यां या सै अजब कहाणी।
साहूकार जमींदार एक बणे चाहे राजा हो या राणी।
मजदूर किसान ना कट्ठे होज्यां ईब जाली बात पिछाणी।

वार्ताः- कुछ दिन भगत सिंह और बटुकएश्वर दत्त को छोड़ बाकी सब को लाहौर बरेस्टल जेल भेज दिया जाता है। कुछ ही दिनों बाद विजय कुमार सिन्हा और राजगुरू भी पकड़ लिये जाते हैं। जुलाई 13 सन 1929 को सभी साथी भूख हड़ताल में शामिल हो जाते हैं। तीन सप्ताह की भूख हड़ताल के बाद जतिन दास, अजय घोष, शिव वर्मा, देशराज की हालत खराब हो जाती है। भगत सिंह, ‘‘दुश्मन की अदालत से न्याय की आशा करना बेवकूफी होगी’’ कह कर कोर्ट का बहिष्कार कर देता है। 17 जुलाई 1929 को दोनों का एक-एक हाथ पुलिस वाले के हाथ से बांध कर जबरदस्ती कोर्ट में पेश किया जाता है। जज के आतंकवादी कहने पर वे कोर्ट की किसी भी प्रकार की कार्यवाही में हिस्सा लेने से इन्कार कर देते हैं। जज पूछता है आखिर तुम चाहते क्या हो? तो भगत सिंह  कहता है हम देश से पूंजीवाद का सफाया करके सत्ता मेहनत करने वालों के हाथों में देना चाहते हैं और बताता है किः-
(भगत सिंह का कोर्ट में ब्यान)
हम चाहवैं हो देश म्हारा आजाद।
गुलामी ना उटै ईब चाहिए हम कर राखे बबार्द - टेक
1. लूट खसोट मिटणी चाहिये ना कोये पिसता नर हो।
माणस सारे एक जिसे ना किते जोर जबर हो।
रोटी कपड़ा मिले बराबर सबका अपणा घर हो।
धन धरती पै हक हो सबका लूटी जा ना कदे कमाई।
करे काम का मिलणा चाहिये धेला हो चाहे हो पाई
भाईचारा होणा चाहिये मिल कै रहै सब भाई-भाई।
न्यूं मेरा देश होवै आबाद-1
2. चाहना आली चीज मिले ब्यौंत जिसा मिले रोजगार।
कद्र काया की होनी चहिये कमाणिया नर हो चाहे नार।
काम चोर हो चौड़े में चोर अपणा आपा लेवे सुधार।
बूढ़े ठेरे ना फिरैं तरसते सरकार सभी का राखै ध्यान।
लंगड़े लूले दुखी रहैं ना हाज्या सबका आदर मान।
दवा दारू हो मुफ्त पढ़ाई मुफ्त रहण नै मिलै मकान।
देश में चाहिये सै समाजवाद- 2
3. शिक्षा का प्रबंध इसा ना कोये अणपढ़ रहै पावैगा।
हारी और बिमारी मिटज्यां जब जी में जी आवैगा।
तानाशाही रिश्वत खोरी जड़ा मूल तै जावैगा।
ना डाका ना चोरी होगी ना हो पाप घोर किते।
नहीं किते हो गुण्डागर्दी ना माचैगा शोर किते।
एक हो कानून सब पै ना हो धक्का जोर किते।
ज्ब होगा ईन्कलाब जिन्दाबाद - 3
4. क्रांति का तनै भेद बतादूं सारे चाहिये एक समान।
असली मतलब ईब खोल दूं सुणलों खूब लगा के ध्यान।
डोर राज की थामेंगे मिल कै नै मजदूर किसान।
क्रांति हो फेर शान्ती होज्या खत्म लड़ाई हों सारी।
गुलामी कटज्या आजादी बटज्यां कटै बिमारी बस म्हारी।
देश का विकास होगा कइै रघबीर सिंह प्रचारी।
यो राह सै एक मार्क्सवाद- 4
वार्ताः- भूख हड़ताल से कई क्रांतिकारियों की हालत काफी खराब हो जती है। देश के कोने-कोने से विरोध भरी आवाजें आती हैं। 2 सितम्बर 1929 को सरकार झुक जाती है परन्तु जब तक जतिनदास की हालत काफी बिगड़ चुकी होती है। यह भूख हड़ताल का 51वां दिन होता है। दुर्गा भाभी जेल में मिलने आती हैं। वह भूख हड़ताल से बिगड़ी हालत पर चिन्ता करती हैं तो भगत सिंह कहता है किः-
भगत सिंह का दुर्गा भाभी को समझना
(तर्जः रामचन्द्र कह गये सिया से .....)
साच बतादे दुर्गा भाभी क्यूं चेहरे पै जर्दी छााई।
सुबक-सुबक कै क्यूं रोवै मेरे नहीं समझ में आई- टेक
1. मनै बतादे भाभी री होग्यी कौण सी आज खराबी।
के नई विपत्ता आण पड़ी जिसकी ना मिलती काये चाबी।
खोल बता दे दुर्गा भाभी करके नै गात समाई - 1
2. जो मन में सै साी कहले खड़ा ईब तेरे पास।
म्हारी ओड़ तै भाभी री तूं मतना होवै उदास।
म्हारे कुर्बानी की लाग्यी चास, या छिड़गी ईब लड़ाई - 2
3. बड़ी भाभी छोटे देवर बेटे कैसा हो सै।
या तो मैं भी जाणूं सूं तेरा मेरे में घणा मोह सै।
क्यूं कर रही आज ल्हको सै तूं किस डर तै घबराई - 3
4. देश के उपर अर्पण सै क्यूं आखां में आसूं ल्यावै।
क्रांति का दस्तूर योहे दुनिया कहती आवै
रघबीर सिंह इसे छंद बणावै, बाचेंगे लोग लुगाई -4
वार्ताः- 24 फरवारी 1930 को सभी विचाराधीन कैदी अपनी गर्दनों पर लाल रूमाल बांध कर अदालत में आते हैं। मजिस्ट्रेट के सामने समाजवादी क्रांति जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं और भगत सिंह एक तार तीसरी ईन्टरनैशनल, मास्को के अध्यक्ष के नाम भेजने के लिये मजिस्ट्रेट को देता है। जिसमें लिखा होता है, ‘‘लेनिन दिवस के अवसर पर सोवियत संघ में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिय अपनी दिली मुबारकबाद भेजते हैं। हम अपने को विश्व क्रांतिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं। मजदूर राज की जीत हो, सरमायादारी का नाश हो।’’ ईन्कलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, विचाराधीन कैदी, 24 फरवारी 1930, लाहौर षड्यन्त्र केस।
भूख हड़ताल के 63वें दिन जतिनदास का देहान्त हो जाता है। शव लाहौर से कलकत्ता ले जाया जाता है। यह गाड़ी जिस भी स्टेशन पर रूकती है हजारों की संख्यां में लोग इकट्ठा हो नारे लगाते हैं। क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए बम बनाए जाते हैं। 28 मई 1930 को रावी नदी के जंगलों में बमों को टैस्ट करते समय एक बम भगवतीचरण वोहरा के हाथ में फट जाता है। जिससे उसका पेट फर कर आंते बहार निकल पड़ती हैं दोनों हाथ उड़ जाते हैं और वे मौक पर ही दम तोड़ देते हैं। इस घटना से भगत सिंह बहुत दुखी होता है पर हिम्मत करके दुर्गा भाभी के नाम पत्र लिखता है, ‘‘भाभी हिम्मत रखना, हम जिस पथ के राही हैं, ये उस पथ की मंजिलें हैं।’’ और कहता है:-
भगत सिंह की चिट्ठी दुर्गा भाभी को
देश पै कुर्बानी दें वैं असल देश के वीर।
मतना दिन नै माड़ा करिये भाभी धरले धीर - टेक
1. भगवती भाई देश पै मरग्या गलामी की खाई भरग्या।
वो तोड़ण की राही करग्या, गुलामी की जंजीर - 1
2. जग सै आजादी का झोया, इसमें अपना साथी खोया।
क्हे हो कै रास्ता टोह्या, औड़े याहे थी तस्वीर - 2
3. एक मेरी याहे सै फरियाद ईब हम होज्यांगे आजाद।
ईन्कलाबा कहै जिंदाबाद तेरा सचिन्द्र बीर - 3
4. यो तै जुल्म खड़ा भरण सै हमनै जग में न्यारा काम करणा सै।
या मौत जरूरी मरणा सै, तूं समझ लिये रघबीर - 4
वार्ताः- 30 सितम्बर 1930 को सरदार किशन सिंह सरकार को अर्जी देते हैं कि जिस दिन साण्डर्स मारा गया भगत सिंह लाहौर में नहीं था। अखबारों के माध्यम से जब भगत सिंह कोइ इस बात का पता चलाता है तो पिता के नाम पत्र लिखता है कि,‘‘पिताजी तेरा पुत्र भगत सिंह अब भी वही भगत सिंह है जो जेल में जाने से पहले था। पिताजी जब अखबार में अपकी अर्जी पढ़ी तो मुझे काफी दुख हुआ है कि एक देशभक्त सिर्फ अपने बेटे को बचाने के लिये ऐसा कर सकता है।’’ काफी सोचविचार के बाद 4 अक्तूबर 1930 को पत्र लिखता है कि -
पिता जी को पत्र
(तर्ज - चांद खिला और तारे हंसे)
मेरे गत मंे दुख बणग्या पढ़ कै नै अखबार।
गल्ती की तो माफी चाहूं पर हो लिया लाचार - टेक
1. तेरे ब्यान नै पढ़ कै नै मेरा धक-धक हिरदा हाला।
मैं न्यूं सोचूं एक देशभक्त यो कौण सी राही चाज्ला।
ठीक मान कै मनैं बताई जिस राही पै मैं घाल्या।
ईब इसे पै मरणा सै पिताजी कति कंरू ना टाला।
जन्ममोम का रूद्धन सुणा या हमने रही पुकार - 1
2. देशभक्त तूं आज बता क्यूं हो रहा नर्म सुभा सै।
तूं आच्छी ढांला जाणौ सै के आजादी का भा सै।
देश के उपर मरण तै आच्छी और कौण सी राह सै।
तूं चाहवै अंग्रेज काढणा याहे म्हारी निंगाह सै।
यो जम्म मोम का रूद्धन सुणी वा हमनै रही पुकार- 1
3. दिन धोली में साण्डर्स मार्या कोन्या ल्हको पिताजी।
खून का बदला खून लेवां न्यूं लाग्यी लौ पिताजी।
इन गौरां का नाश हमने करणा खो पिजाती।
नौजवानसभा बणी सै जंगी ना शान्ती हो पिताजी।
शान्ती और अहिंसा ये ना म्हारे औजार - 3
4. अंग्रेज देश तै काढे़ जां जब हो सरकार हमारी।
मेहनतकश की मेहनत मिलै खत्म हो जंमीदारी।
जीवण का अधिकार मिलै खुश होगी प्रजा सारी।
समाजवाद की राह टोहवैं सारे काम बणै सरकारी।
रघबीर सिंह से मालिक होंगे जो असली हकदार - 4
वार्ता:- 7 अक्तूबर, 1930 को लाहौर षड्यन्त्र केस के तहत गिरफ्तार किये गए नौजवानों को स्पेशल ट्रिब्यूनल के सामने पेश किया जाता है। तो भगत सिंह कहता है,‘‘ जज साहब, आजादी हम लोगों का बुनियादी अधिकार है, हर आदमी को अपनी मेहनत का फल प्राप्त करने का अधिकार है, हर देश अपने साधनों का मालिक है। हम चाहते हैं कि मौजूदा समाज व्यवस्था को एक बढ़िया समाज व्यवस्था में बदल दिया जाए।’’ जेल के भीतर ही लगाई गई स्पेशल कोर्ट भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी, किशोरी लाल, शिव वर्मा, गया प्रसाद, जयदेव कपूर, विजय कुमार सिन्हा, महावीर सिंह और कमलनाथ को आजन्म काले पानी की सजा देती है। अजय घोष, यतीन्द्र नाथ सान्याल व देश राज को बरी कर दिया जाता है। चन्द्रशोखर आजाद, कैलाशपति और सतगुरू दयाल अब तक फरार ही होते हैं। फैसले की खबर सुनकर भगत सिंह की मां मिलने के लिए जेल जाती है। गेट पर खड़ा सिपाही गेट से मना कर देता है।
तो विद्यावती और सिपाही में बातचीत होती है कि:-
हट-हट के नै अर्ज करूं उस भगत सिंह के नाम की।
मिल कदे नै बाट देख रही सवेरे तै श्याम की - टेक
1. मां - फेटण खात्यर आई सूं किते मिला कोये राह कोन्या।
मात पूत नै नहीं मिलण दे यो कुदरत कै न्याय कोन्या।
माणस पण का ख्याल करले के तेरे दिल में डाह कोन्या।
क्यूं घौंस दिखाणा चाहवै सै के तेरे घर मां कोन्या।
इतना जालिम क्यूं हो राह सै के जागीर मिले किसे गाम की -1
2. सिपाही - न्याय नीति का बेरा ना मैं करण गुजारा आराह सूं।
जिसा हुक्म मिले वो पड़े पुगाणा बस अपण फर्ज पुगा रहा सूं।
हां जी हां जी कहणा हो सै इसे बात का खा रहा सूं।
और जीवण का राह कोन्या ना देखूं बाट ईनाम की - 2
3. मां - मैं अपणे दुखां तै दुखी फिरूं घणी दुखां की मारी।
अंग्रेजां का राज आड़ै एक याहे मश्किल भारी।
सारा कुणबा रहै जावता जेल में बारी-बारी।
मेरे लाल पड़े ओड़े जेल में आज मिलण नै आरही।
तू के कह मैं जाणू सूं जो के हालत होया करै गुलाम की - 3
4. सिपाही - हुक्म का बणया गुलाम खड़ा सूं गेट पै पहरेदार मैं।
जो भी तो आदेश मिलेगा कर ना सकूं इन्कार मैं।
खामे खां में दोष धरै ना बड़ी सूं सरकार मैं।
त्रिशंकू की ढाल लटक रहा आलिया मंझदार में।
रघबीर सिंह मैं उनमें कोन्या जिनने नहीं जरूरत राम की - 4
वार्ता:- आखिर विद्यावती को भगत सिंह से मिलने की ईजाजत मिल जाती है। भगत सिंह खुश हो कर मां से मिलता है तो मां कहती है बेटा तेरा इम्तिहान का समय है, हिम्मत रखना और कहती है कि:-
विद्यावती का समझाणा
भगत सिंह मेरा बेटा तू आज मेरा ख्याल करिये रे।
किसे ढाल का डर मतना मेरे लाल करिये रे - टेक
1. फेटण खात्यर आई सूं तेरा हुक्म होया सै फांसी का।
कदे गहज्या ऐकला बहज्या यो चांद मेरा पणवासी का।
याहे राही मुक्ति आली न्यू ंनाश हो सत्यानाशी का।
तेरे नौजवान सभा के साथी कहैं उसे ढाल करिये रे - 1
2. जोर जुल्म बढ़ता जावै और आगे की थाह कोन्या।
दीन ईमान छोड्या कोन्या माणस पण का भा कोन्या।
आहमी साहमी लोगे मार्चा इसतै न्यारा राह कोन्या।
ईब सौ जन्मों के जैसे तेईस साल करिये रे - 2
3. तेरे रोम-रोम में रहा होया इब हो चाल्या कुर्बान रे।
मन में घणा उम्हाया था तेरा ओड़ै ऐ या ध्यान रे।
तेरा ईन्कलाब घणा दूर गया यो जाग्या हिन्दूस्तान रे।
तूं करतार सिंह की राही चाल्या उसऐ हाल करिये रे - 3
4. रघबीर सिंह कह राजी होग्यी मेरे गात में भरा उमंग।
ऐसा काम करिये बेटा सुण के दुनिया रहज्या दंग।
मैं सारे देश में बेरा करद्यंू शहीद हो मेरा भगत सिंह।
मेरे दूध का मान बधे इसी मिशाल करये रे - 4
वार्ताः- उन्हीं दिनों बब्र अकाली आन्दोलन के बाबा रणधीर सिंह भी लाहौर सैन्ट्रल जेल में होते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी का हुक्म हुआ है तो भगत सिंह के पास जा कर कहता है,‘‘बेटा आखिरी समय में वाहे गुरू, खुदा, भगवान को याद करना चाहिए।’’ तो बाबा रणधीर सिंह और भगत सिंह के बीच बातचीत होती हैः-
यो संसार दुखां का सागर ना कोये किसे मीत।
टेम आखिरी वाहे गुरू तै जोड़ लिये प्रीत- टेक
1. मरणा जीणा लागया जीव के पड़ै लाजिमी जाणा।
हाथ बात सब ईश्वर के ना चालै धिगंताणा।
जितने गिण के सांस दिये जो लिख्या भाग में खाणा।
जो दे सै वो उल्टा ले तो या खोड़ सै माल बिराणा।
उस परम पिता नै रटले बेटा बीत गई सै बीत-1
2. कुदरत का दस्तूर बताया सारे माणस एक समान।
कोये छोटा कोये बड़ा बणा क्यूं सुण ले बात लगा के कान।
कोये भूखा कोये नगर सेठ से बिना कमाये कर रहा दान।
जोर जुल्म और लूट मार पै राम कदे भी दे ना ध्यान।
गरीबां का तो रूद्धन सुणे ना बेईमानां का सुणे संगीत-2
3. मेरी कही तूं समझा कोन्या कोन्या लाया जोड़ तनै।
गली गली में चर्चा सै तेरी याद करैं करोड़ तनै।
घमण्ड का पर्दा खड़ा बीच में परम पिता दिया छोड़ तनै।
तूं न्यूं सोचै मैं बड़ा हो लिया रास्ता लिया मोड़ तनै।
सब के कारज सारण आला उस बिन कोन्या जीत-3
4. झूठी मठी बतां का मनैं भेद पाट लिया सारा सै।
पत्थार की एक बणा मूर्ति पाखण्ड बणाया भारा सै।
कितणे गरीब मरैं भूख तै यो सत्तर भोग लगा रहा सै।
के मजदूर किसान कोये भी नहीं राम नै प्यारा सै।
रघबीर सिंह से समझेंगे फिर लिख करेंगे गीत-4
वार्ताः- बाबा रणधीर सिंह फिर कहता है भगत सिंह एक बार भगवान को याद करले। भगत सिंह कहता है, ‘‘बाबा, मजदूर और किसान की दिन-रात की मेहतन पर डाका डाला जा रहा हो, लूटने वाला दिन रात ऐश कर रहा हो भगवान कुछ भी ना करे। मुझे किसी भी देवता या भगवान की कोई जरूरत नहीं है।’’ बाबा रणधीर सिंह गुस्से में कहता है भगत सिंह आज सारे देश में तेरी चर्चा है। इस प्रतिद्धि के कारण तेरा सिर चकरा गया है जिससे तेरे अन्दर अहंकार पैदा हो गया है। जो तेरे और भगवान के बीच शाह पर्दे की तरह खड़ा है। इतना कह रणधीर सिंह निराश हो बैठ जाता है तो भगत सिंह कहता है कि:-
इन बातां में के धरया सहम क्यूं बैठा सिर पकड़ के।
ये रूढ़िवादी विचार आंख में कुणक की ढांलां रड़कै - टेक
1. मनैं बचादे मरणे तै इसा राम किते धनश्याम नहीं।
मैं डर जाउं मरणे तै इसा हृदय मेरा मुलायम नहीं।
मनैं दिखै सै एक आजादी और करण नै काम नहीं।
मैं राजी सूं फांसी खाकै पर चाहता तेरा राम नहीं।
ताकत थी तै क्यूं बाली मर्या बड़े के भीतर बड़के -1
2. श्रूद ढोर ढ़ोल और नारी ये सब ताड़न के अधिकारी।
इसे-इसे राजे बणे देश के फेर भी लोग कहैं न्यायकारी।
ईज्जत लूटें गैर बीर की जति कहै दूनिया सारी।
ना चाहिये अवतार मनैं ये कृष्ण कै से बलकारी।
तेरे देश पै राज विदेशी यो सोग्या राम कित पड़के-2
3. बिस्मिल की गैल्यां तीन मारे जब राम कड़ै जा रहा था।
जलियांवाला काण्ड कर्या जब के डायर मार्या था।
महाभारत क्यूं हाया देश में खुद कृष्ण आ रहा था।
चोर उच्चके बणे देवता यो पागल देश ......
करया देश का नाम कति ये कथा नई-नई धड़कै -3
4. हक की खातर लड़ने का कदे दिया राम नै ज्ञान नहीं।
कौण कमावै कौण खा रहा कदे राम कैरे पहचान नहीं।
मुफ्तखोर नै ये ढांे़ग बणाये इन बिन बाजे तान नहीं।
गरीब आदमी नै आज तलक भी मिल्या कदे भगवान नहीं।
रघबीर सिंह जब मांगे रोटी के राम लिकड़ज्या जड़कै -4
वार्ताः भगत सिंह 2 फरवरी, 1931 को अपने साथियों के नाम पत्र लिखता है कि साथियों इस समय हमारा आन्दोलन बहुत ही महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है। एक साल के तगड़े संग्राम के बाद कांग्रेसी नेताओं को बुलावा दिया गया है कि वे संविधान की तैयारी में हाथ बंटाये। यह बात हमारे लिये महत्वपूर्ण नहीं है कि कांग्रेसी नेता इस हालत में आन्दोलन को बंद करने के हक में फैसला करते हैं या इसके विपरीत? यह तो निश्चित है कि वर्तमान आन्दोलन का अन्त किसी ना किसी समझौते के रूप में ही होगा। यह दूसरी बात है कि समझौता जल्दील हो या देस से। ‘‘सरकार के इस बुलावे के बाद गांधी अपने सभी आन्दोलन ठप्प कर देते हैं और क्रान्तिकारियों से भी अपील करते हैं कि सभी तरह की कार्यवाही रोक दी जानी चाहिए। सुखदेव गांधी जी को पत्र लिख कर अपील करता है आप एक बार हिन्दूस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र संघ के साथियों से मिल लें अगर यह गलत लड़ाई लड़ रहे हों, तो हम रोक देेगंे। अगर आप उनसे मिलना भी ना चाहते हों तो मेहरबानी करके हमें शिक्षा देने की जरूरत ना समझें, लिखता है कि:
सुखदेव का गांधी जी को पत्र
गुस्ताखी की तै माफी चाहूं पर कहे बिन दिल डटै नहीं।
कुर्बानी और हत्या बिना या कदे गुलामी कटे नहीं - टेक
1. था जनता में जोश बहोत फेर क्यूं करी अपील तनै।
अहिंसावादी आन्दोलन म्हारा याहे दई दलील तनै
समझौता करग्या गौरां तै सही गड्य दिया मील तनै।
जिंदगी भर तक दर्द रहेगा इसी ठोक दी कील तनै।
फेर क्यूं मैं तेरी राही तै दुख के बादल छंटै नहीं।
2. गौरां गैल्या समझौता कर दिया जी नै रासा।
आर-पार की जंग छिड़ी थी पलट दिया तनै पाशा।
कांग्रेसी सब छुटा लिये या झूठी तेरी दिलासा।
आन्दोलन दिया तोड़ बख्त पै दे लोगों नै झांसा।
मेरी ख्याल तेरे रोग और सैयेतरो मर्ज मिटै नहीं -2
3. बब्बर अकाली गदरी बाबे जेलां के म्हां सड़ रहे सैं।
देवगढ़ कानपुर और लाहौर काण्ड आले अड़ रहे सैं।
कितनी बेटी बाहण म्हारी जीने रासे छिड़ रहे सैं।
इनकी तो तनै पूछी कोन्या धरां बैठ के घड़ रहे सैं।
जै हमदर्दी राखैं सै तै तेरा मिलणे में किमे घटै नहीं - 3
4. जै माणस पण का ख्याल करै ईतणा कहण भतेरा।
चन्द्रशेखर तै फेट लिये फेर भरज्या पेटा तेरा।
ना मानै तूं अपणे राजी ईन वीरों नै सै खुद बेरा।
लोग दिखावा रहम कर्र मत ले थाम अपण डेरा।
रघबीर सिंह कहै क्रान्तिकारी कदे उल्टे हटैं नहीं - 4
वार्ता:- जेलर के पूछने पर कि तुम्हें तो फांसी होगी वो क्रांति कहां गई, भगत सिंह कहता है, ‘‘क्रांति संसार का नियम है, और यह संघष्र का परिणाम है। भारत में यह संघर्ष तब तक चलता रहेगा, जब तक मुट्ठी भर लोग अपने फायदे के लिए आम जनता की मेहनत को लूटते रहेंगे। ये लूटेरे भारतीय हों, चाहे अंग्रेज हों या दोनों मिल कर खड़े हों। संघर्ष को, क्रांति को दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं सकती। मुझ जैसे हजारों, लाखों मरेंगे और करोड़ों पैदा होंगे, चाहे मैं जमीन पर रहू या न रहूं क्रांति हमेशा अमर रहेगी।’’
चन्द्रशेखर आजाद संगठन की बैठक बुलाकर सभी सदस्यों से कहता है कि साथियों की गिरफ्तारी सजा ये सब हमारे आन्दोलन का हिस्सा है। इनसे घबराना नहीं है यह स्थिति स्थायी नहीं है समझाता है कि:-
आजादी मांगी ना मिलती जीत्यां करैं बलवान।
अमर शहीदी के पावैगा जी कै हथेली उपर ज्यान - टेक
1. दसमा महीन तिथि सात नै खिला चांद होई पणवासी।
लिख्या फैसला मार्च मं ये तोड़े जां तीनों फांसी।
राजगुरू सुखदेव भगत सिंह नै याद करैं भारतवासी।
ये मर कै भी जिंदा रहेगें तुम मतना करो उदासी।
त्ीन मरैं सौ पैदा होंगे देश के पूत महान-1
2. इस माटी तै जन्म लिया सै हम भारत के लाल।
इसे खात्यर अर्पण सै सब ना कति मरण की टाल।
दिये वचन तै ना कति हटांगे मरैं वीरों की ढ़ाल।
गोली फांसी चाहें सूली होज्या पर ना बदलेगाी चाल।
देश का बोझ धरया कांधे पै तुम वीर देश की श्यान - 2
3. भारत की आजादी का यो बीड़ा ठाया नौजवानों नैं।
क्रांति का संदेश चोगरदे यो पहुंचाया नौजवानों नै।
ईन्कलाब का नारा प्यारा सै अपणाया नौजवानों नै।
ये अलख जगावण चाल पड़े यो सोया हिन्दूस्तान - 3
4. अहिंसा आला नारा ला कै अजादी की दई दुहाई।
अंग्रेजां तै समझौता करके एक न्यारी चाले राही।
चौराहे पै लोग खड़े ना रास्ता कोये दिया दिखाई।
म्हारे जिम्मे यो काम बचा सै कांग्रेस गई छोड़ लड़ाई।
रघबीर सिंह ईब जंग छिड़ेगी संग में त्यों मजदूर किसान-4
वार्ताः- बैठक में फैसला किया जाता है कि यशपाल रूस जाकर वहां के मजदूर किसानों के क्रांतिकारी संगठनों के काम करने के तौर-तरीकों का अध्ययन करे और किसी भी प्रकार की जो भी मिले सहायता ले आये ताकि दोबारा से हम फिर पुरजोर तरीके से आन्दोलन खड़ा कर सकें, परन्तु यह योजना सिरे नहीं चढ़ती क्योंकि 27 फरवारी 1931 को सुबह ईलाहबाद के एल्फ्रेड पार्क में पुलिस से मुठभेड़ में चन्द्रशेखर शहीद हो जाता है। फरवरी की अठाईस तारीख को गंगाघाट पर चन्द्रशेखर आजाद का दाह संस्कार किया जात है।
38. घटना का वर्णन
सारे शहर में करलाहट मचग्या जब अर्थी ठाके चालै।
पक्षी तक भी रोवण लाग्ये जब कर दिया अग्त हवालै - टेक।
1. शहर बीच औड़े बागां के म्हां भीड़ होई बड़ी भारी।
हो रही बंद जुबान सब कै घणी उदासी छारी।
धार खून की पड़ी देख होगा नैनां तै जल जारी।
जड़ै पड़ा था खून वीर का पूजैं थे नर नारी।
हिया उझल के आवै था बता किसनै कौण संगवाले - 1
2. गंगाघाट पै ले के आग्ये शूरवीर की लाश।
चेेहरे का था नूर गजब खिल्या होया प्रकाश।
यो मुहं तै जणु ईब बोलगा ना था कति उदास।
जे देखे वो रोवण लागज्या अंग्रेजों थारा जागा नाश।
जुल्मी जोर जब देख के सबके कालजे हाले - 2
3. ल्याके लाकड़ी चिता बणादी साथ खड़े संगी साथी।
एक ऐकला आया था आज दूनिया बणी हिमायती।
एक मामूली माणस था जो बणया जग का पंचायती।
क्हे जोर जुल्म और लूट मार या कोन्या मैंने सुहाती।
पराधीन सुपनेहू सुख ना के पीवै के खाले - 3
4. पवन भी मंद गति में चालै देख वीर की श्यान।
पत्ते तलक भी ना हालैं औड़े पेड़ खड़े सुनसान।
अग्नि जारी होई चिता में जब रोया था आसमान।
हुक मार के रोवण लाग्ये बालक बूढ़े और जवान।
रघबीर सिंह ईसा ढ़ंग देख के के रोवे के गाले -4
वार्ताः- 3 मार्च 1931 को भगत सिंह के परिवार के सभी लोग मिलने के लिए आते हैं तो भगत सिंह अपनी मां को एक तरफ ले जाकर कहता है, ‘‘बेबे जी फांसी के दिन आप ना आना, आप रोयेंगी। लोग आपको सम्हालने में लगेंगे कि लाश लेंगे। ऐसा ना हो आप पागलों की तरह रोती फिरैगी तो लोग क्या कहेंगे कि भगत सिंह की मां रो रही है।’’
सारे देश से नौजवानों, मजदूरों, किसानों की आवाजें उठती हैं कि गांधी जी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के लिए दबाव डालें पर 19 मार्च 1931 को शिमला में महात्मा गांधी और लार्ड इरविन के बीच बैठक होती है मगर इरविन की आत्मकथा के अनुसार गांधी जी द्वारा भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फांसी को आजन्म कारावास में बदलने का मसला आखिरी समय में उठाया गया जब बैठक का एजेण्डा खत्म हो चुका था। लाहौर जेल में बंद जयदेव कपूर एक दिन भगत सिंह से कहता है, तुम मरने जा रहे हो तुम्हें अफसोस तो नहीं है? भगत सिंह कहता है तुम जैसे मेरे साथी हो जो बिल्कुल एकेले विपरीत हालातों में भी ना घबराते हों तो मुझे मरने के लिए हौसला मिलता है और कहता है कि:-
साम्राज्यवाद कै खड़े सामणे कर छाती बज़र की।
ज्यान हथेली पै लेके आरहे फेर बात कौण सी डरण की - टेक
1. अपणा पेट तो दूनिया भरती जैमाणस पण का ध्यान हो।
दुखिया का दुख करले साझा वो सच्चा ईन्सान हो।
पुरूषार्थ हो जीवण की राह ना मन में अभिमान हो।
जोर जुल्म कै साहमी डरज्या यो माणस का ईमान हो।
अपणा फैसला खुद करते हम ना चाहना सै जर की -1
2. जनता के अधिकारां खातर लड़ते लोग लुगाई।
दिन और रात लागे रहैं जो आन्दोलन की राही।
जीत बिना ना बणै हौसला जा बैठ बीच में भाई।
इसी-इसी भी बणया करै जब रहज्या एक सिपाही।
वाहे राही चालें जा जो बहादूर शाह जफर की -2
3. एक ऐकला चाल्या जावै हो घनघोर अंधेरा।
सुुनी राही ना कोये साथी ना किते बीच में डेरा।
हमदर्दी के बोल सुणै ना ना कोये तेरा मेरा।
सारे बोझ नै धर कान्धे पै एक जोत बाल के ल रहा।
उल्टा हटणा मौत मान ली न्यू बाजी लादी सिर की -3
4. कोन्या देखै बाट आर का जा आग चाला जा रहा।
अपणे सिर पै जब्र भरोटा एकला ऐ ठा रहां
ईन्कलाब का बणा सिपाही ध्यान ठिकाणे ला रहां
इसे-इसे मेरे साथी सै इनने जाणेगा जग सारा।
कह रघबीर सिंह हो पूरी मन की ना हम ना बाट देखते हार की - 4
वार्ताः- भगत सिंह कहता है कि तुम जैसे मेरे साथी हों फिर घबराने की तो बात ही नहीं हो सकती, क्रांति के इस मार्ग मर कदम रखते समय मैंने सोचा था कि यदि मैं अपना जीवन देकर देश के कोने-कोने तक ईन्कलाब जिंदाबाद का नारा पहुंचा सका तो मैं समझूंगा मुझे अपने जीवन का मूल्य मिल गया। आज फांसी की इस केाठरी में लोहे के सीखचों के पीछे बैठकर भी मैं करोड़ों देश वासियों के कष्टों से उठती हुई हुंकार को सुन सकता हूं। मुझे विश्वास है कि मेरा यह नारा स्वाधीनता संग्राम की चालक शाक्ति के रूप में साम्राज्यवादियों पर अंत तक प्रहार करता रहेगा। मेरा मित्र, ईतनी छोटी जिन्दगी का इससे अधिक मूल्य हो भी क्या सकता है?
सरकार फांसी से दूसरे क्रांतिकारियों को कहीं ओर ले जाना चाहती है। जेलर के कहने से सभी लाईन में बारी-बारी तीनों साथियों से मिलते हैं शिव वर्मा, भगत सिंह के सामने जाते ही आखों में आंसू आ जाते हैं तो भगत सिंह कहता हैः-
मरणा जीणा लाग्या सब कै या छोटी सी बात।
आखां में क्यूं पाणी आया बता भाई प्रभात- टेक
1. मैं नाम डरण का भूल गया जब होगा क्रांतिकारी।
देश पै अर्पण करग्यी आके जेल में महतारी।
देणी सै कुर्बानी भारी ना कति बचाईये गात - 1
2. मरणे का डर मनैं कति ना ध्याान देश पै लागा।
ईन्कलाब का नारा प्यारा घर-घर में पहुंचाया।
हो रहा मेरे मन का चाहा, जो करीं थी मैंने खुभात - 2
3. कटै गुलामी उस राही पै करया मनैं कुर्बान।
ईन्कलाब दे मनैं सुणाई इब जाग्या हिन्दूस्तान।
एका करैं मजदूर किसान में टूटेंगी हवालात - 3
4. इसतै बडी मोल बता के दो दिन की जिन्दगानी का।
रघबीर सिंह से जिकर करेंगे म्हारी देश कहाणी का।
इतिहास लिखैं कुर्बानी का तो कागज कलम दवात -4
वार्ता:-भगत सिंह कहता है , ‘‘भावुक बनने का समय नहीं है, प्रभात (शिव वर्मा का संगठन में नाम) मैं तो कुछ ही दिनों मंे सारे झंझटों से छुटकारा पा जाउंगा, लेकिन तुम लोगों को लम्बा सफर तय करना पड़ेगा। मुझे विश्वास है उत्तरदायित्व के भारी बोझ के बावजूद इस लम्बे अभियान में तुम थकोगे नहीं, पस्त नहीं होंगे, हार मान कर रास्ते में बैठ नहीं जाआगे।’’ और कहता है किः-
लिया धार बसन्ती बाणा फेर चेहरे क्यूं जर्दी छाई।
तूं भगत सिंह का साथी सै फेर क्यूं रोया मेरे भाई - टेक
1. हर माणस का मरणा जीणा सब का न्यारा न्यारा।
अप-अपणी सब जिंदगी जीवेम कोये निमल कोये भारा।
क्रांतिकारी माणस हो सै जणु ध्रुव सा तारा।
एक ऐकला रहज्या फिर भी दे ईन्कलाब का नारा।
इसे वीर लड़ाके इस दुनिया में भरैं जुल्म की खाई - 1
2. अपणापण के बोल सुनण नै जब माणस तरसावै।
एक ऐकला रहज्या फेर भी ना मन में धबरावै।
कदे न कदे तो मिलेगी मंजिल आगे से बढ़ता जावै।
सुन्नी राही घणा अंधेरा ना उल्टा कदम हटावैं।
कर बज्र सा गात ईब तेरी होज्या एकल कमाई-2
3. ईब लड़ाई अंग्रेजां तै आजादी खात्यर लड़ रहें सैं।
जोर जुल्म और शोषण हो ना न्यूं गौरां तै भिड़ रहें सैं।
इन गौरां के जाये पाछे हम एक नक्शा घड़ रहे सैं।
पर तूं जावे ये काले गौरे मिल कै आगै अड़ रहे सैं।
लेन देन की बात चाल रही कोन्या शर्म सच्चाई - 3
4. तेरी आंखा में नीर देख के मेरा कालजा हालै सै।
तनै नीम का पत्थर होणा होगा यो देश थारे हवालै सैं।
ढ़ील करी रखवाले ने तो ना चोर कति घर घालै सैं।
गौरे काले मिल के रवाज्यां जै तूं ना देश सम्हालै सैं।
रघबीर सिंह तूं धीर राखिये ना देगी काम ढ़िलाई - 4
वार्ताः- दिनांक 20 मार्च, 1931 को क्रांतिकारियों के वकील प्राणनाथ मेहता अपील के बारे में बात करने जेल जाते हैं तो भगत सिंह कहता है, ‘‘हमने यह तो पहले ही भेज दी है कि, हमारे प्रति युद्ध बंदियों जैसा व्यवहार किया जाये हमें फांसी की बजाय गोली से उड़ाया जाये।
22 मार्च, 1931 को भगत सिंह अपने साथियों के नाम संदेश भेजता है कि, कुछ लोगे फांसी की सजा के बारे में अलग विचार रखते हैं परन्तु साथियों यदि मैं पूरे देश में ईन्कलाब जिन्दाबाद का नारा अपना जीवन देकर भी प्रसारित कर सका तो समझूंगा कि मैंने अपने जीवन का मूल्य पा लिया है। अगर मैं फांसी से बच जाउं तो शायद क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धम पड़ जाये या सम्भवतः मिट जाये लेकिन दिलेराना ढ़ंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी पर चढ़ने की सूरत में भारतीय मांये अपने बच्चों में भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी। 23 मार्च को सुबह भगत सिंह का पूरा परिवार मिलने के लिए आता है। परन्तु मिलने की ईजाजत नहीं मिलती तो भगत सिंह अपने छोटे भाई कुलबीर सिंह को पत्र लिखता है, ‘‘आखिर दुनिया में दूसरे  लोग भी तो हजारों मुसिबतों में फंसे हैं और फिर लगातार एक साथ मुलाकातें कर तबियत सेर नहीं हुई तो दीगर मजीद मुलाकातों से भी तसल्ली ना हो सकेगी।’’
लेगों को पता चल जाता है कि भगत सिंह के परिवार के लोगों को मिलने भी नहीं दिया गया तो जेल के गेट पर भीड़ ईकट्ठी हो जाती है। भारी पुलिस व मिलिट्री के आने के बाद भी लोग गेट से नहीं हटते जहां विद्यावती बैठी है वहां भीड़ बढ़ती जाती है तो किशन सिंह कहता है उठो नही ंतो क्या पता कितने भगत सिंह देने पड़ेगंे और कहता है किः-
किशन सिंह का विद्यावती को कहणा
तर्ज: सामण की
इन तीनों की गैल में, आड़ै घणे मरेगें।
ना तै उठ खड़ी हो घरां चाल - टेक
1. दिल में धर निलये धीर मत नैनां का खोवै नीर।
इस हो रही धक्का पेल में, ना ये लोग डरेगें।
कुछ आगे का कर ख्याल - 1
2. ईन गौरां का जब्र वसीला-आड़ै घणे मरैं हों उट मटीला।
देखिये खूनी जेल में, आड़ै ताल भरेंगे।
दिये इस मौके ने टाल - 2
3. तूं घूंट सब्र की भरले, उठ खड़ी हो तावल करले।
पो तै होणा सै इस खेल में, ये तारके शीश धरेेंगे।
ये देश के हो लिये लाला-3
4. तूं मतना देर लगावै बिगड़ी बात हाथ ना आवै।
कह रघबीर सिंह रेलमपेल में, ये कायर करेंगे,
बेरा ना कितने होंगे घायल - 4
वार्ता:- सरदार किशन सिंह कहता है, ‘‘उठो जल्दी करो एक-एक पल कीमती है, पागल मत बनो, समझो कि जब तक तुम यहां से सनहीं हटोगी तब तक यहां से कोई नहीं हिलेगा, भीड़ को यहां से हट जाना चाहिए नही ंतो गोली चल जाऐंगी और एक भगत सिंह के साथ ना जाने कितने भगत सिंह देने पड़ेंगे।’’
23 मार्च, 1931 को जेलर कोठरी के गेट पर आकर भगत सिंह से आखरी ईच्छा पूछता है भगत सिंह कहता है, ‘‘एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से बातें कर रहा है यह पूरी होने दें।’’ (उस समय भगत सिंह के हाथ में लेनिन की जीवनी होती है।) वह दो मिनट बाद उठ खड़ा होता है कहता है चलो चलते हैं।
त्ीनों को फांसी के तख्ते पर लाया जाता है, तीनों आपस में एक दूसरे की तरफ देखते हैं सुखदेव कहता है, ‘‘हम रहें ना रहें हमारी जनता जीवित रहेगी, मार्क्सवाद का हमारा उद्देश्य अवश्य जीवित रहेगा।’’ भगत सिंह मौके पर खड़े मजिस्ट्रेट को कहता है मजिस्ट्रेट साहब आप वास्तव में बहुत भाग्यशाली हैं क्योंकि आपको यह देखने का अवसर प्राप्त हो रहा है कि भारतीय क्रांतिकारी अपने महान आदर्श के लिये किस प्रकार हंसते-हंसते मौत का आंलिगन करते हैं। फांसी के तख्ते से तीनों साथी आने नौजवान साथियों को संदेश देते हैं किः-
तीनों वीरों का नौजवानों के नाम संदेश
(तर्ज: तेरे द्वार खड़ा एक जोगी ....)
सभी साथियों को लाल सलाम।
हम छोड़ चले इस देश को तुम लियो साथियों थाम - टेक
1. अपणा काम करते जाओ, जन्म ले ले मरते जाओ
जब तक मिलै ना आजादी।
सारे देश में लाओ क्रांति, कोन्या देगी काम शान्ती।
यूं होज्या घणी बर्बादी।
बीच में डोबैं अहिंसावादी, इसके दो गेर लगाम - 1
2. देश छोड़ कै हम तो चाले, ईब थारै सै देश हवाले।
करियों साथियों ख्याल।
इसकी खात्यर लड़ो लड़ाई, कट्ठे करके लोग लुगाई।
करद्यो धरती लाल।
अर्पण करदो ज्यान माल, तुम मत करियो अराम - 2
3. ल्याणा सै आड़ै समाजवाद, भाईचारा हो आबाद।
हो सब कट्ठे नौजवान।
क्रांति का करो प्रचार, चौबीस घण्टे रहा त्यार।
ल्यो संग मजदूर किसान।
देेश हवाले करदो जयान, के जीवेम माणस गुलाम - 3
4. म्जदूर किसन हो कठे भाई, कार्ल मार्क्स की चालैं राही।
कमेर्यां के नेता खाश।
झण्डे में हथोड़ा दाती, रघबीर सिंह सै म्हारा साथी।
वो छापेगा इतिहास।
मेहनतकश नै कर्या पास उसका बण्डाहेड़ी माम - 4
वार्ताः- तीनों क्रांतिकारी लगाते हैं
ईन्कलाब-जिन्दाबाद, जिन्दाबाद-जिन्दाबाद
समाजवाद-जिन्दाबाद, जिन्दाबाद -जिंदाबाद
पूंजीवाद-मुर्दाबाद, मुर्दाबाद-मुर्दाबाद
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद- मुर्दाबाद, मुर्दाबाद
आखिर 7 जब कर 23 मिनट पर फांसी का तख्ता गिरा दिया गया। पूरी जेल ईन्कलाब-जिंदाबाद, भगत सिंह जिंदाबाद, सुखदेव जिन्दाबाद, राजगुय जिन्दाबाद के नारों से गूंज उठी। फांसी जो हमेशा सुबह दी जाती है इन तीनों वीरों को सायं को दी गई और इनके शवों को अंतिम संस्कार के लिये उनके परिवारों को सोंपने की बजाय, शवों के टुकड़े किये गय, उन्हें टोकरों में भर कर जेल के उस रास्ते से निकाला गया जहां से मल और कूड़ा करकट निकाला जाता है। उसके बाद इन लाशों को रात के अंधेरे में फिरोजपुर के पास (हुसैनीवाला) सतलुज नदी के तट पर ले जाया गया। जब शव अधजली अवस्था में थे, उन पर पानी फेंका जाता है और उन टुकड़ों को नदी में फैंक दिया जाता है।
24 मार्च का दिन पूरे भारत मंे शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है, सतलुज नदी के किनारे पर, जहां अंग्रेजों के भाड़े के टटूओं द्वारा संस्कार किया गया था, हजारों नौजवान शहीदों के सम्मान में इकट्ठे होते हैं। शपथ लेते हैं कि जब तक शहीदों के सपने पूरे नहीं होते हम आराम से नहीं बैठेंगे, हमें चाहे बड़े से बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
ये नौजवान गुलामी के खिलाफ आजादी के लिये, समाज में फैली बुराईयों, अंधविश्वास, जातिप्रथा, छुआछात, किसी भी तरह की लूट, शोषण और दमन के खिलाफ लगातार लड़ते है और जब देश को आम मजदूर किसान अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा होता है, अंग्रेज समय रहते इस आक्रोश को समझ जाते हैं और सौदेबाजी कर देश की बागडोर कांग्रेसी नेताओं को सौंप जाते हैं। भगत सिंह और उसके साथियों ने जो कहा करते थे कि लार्ड ईरविन या लार्ड रीडीग की जगह तेज बहादुर सप्रु या पुरूषोतम ठाकुर के आने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा और वही हुआ कोई फर्क नहीं पड़ा। आज देश में अफरातफरी, मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, गुण्डागर्दी, लूटमार, बलात्कार आम बात बन गई। इन हालातों से दुखी हो आज देश के लागे भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव द्वारा अपना बलिदान देकर जो मशाल जलाई थी उसे क्रांति का रूप देने के लिये, उन्हें फिर से याद करते हैं कि:-
भगत सिंह थारे ईन्कलाब तै आवै था जोश जवान में।
हटके फेर जरूरत सै तेरी आज्या हिन्दूस्तान में - टेक
1. तनै बताई वा आजादी हमनै ना मिली।
तनै चाही जो कली खिलाणी वा रहग्यी बिना खिली।
रूखां के तै ठूंठ हो लिये या माली नै चाल चली।
बाड़ खेत नै खाण लागग्यी ना सिर तै विपता टली।
खड़ा गेट पै मजदूर रौवे किसान रोवै खलियान में।
2. अंग्रेज गये तो काले आग्ये ना किमे हुई आणी जाणी।
लूट खशोट न्यूये चालै ना बदली चाल पुराणी।
साहूकार बड़े वैं राज के मालिक ना गई बात पिछाडी।
वे ही रीति वे ही नीति कहे राम कहाणी।
कदे धर्म और जात गोत पै चर्चा रहै जुबान में - 2
3. पैंसठ फीसदी अणपढ़ सैं हुई सत्तर साल की आजादी।
उस्सी फीसदी मोहताज हुये या भूखी रही आबादी।
मुफ्त दवाई ना मिलै पढ़ाई मोल बिकै सैं बेमियादी।
भ्रष्टाचार गया फैल चौगरदे न्याय की भी कीमत लादीं
पहर के खादी ऐब ढ़के जां राज की दूकान में - 3
4. सन सैंतालिस में छोड़ दिया कौण था वो भगत सिंह।
छोड़ चले तेरी उस राही नै राज के नेता होग्ये नंग।
गांधीवादी नेता होग्ये और कमेरे हो रहे तंग।
रघबीर सिंह न्यू फिरै ढूंढता किते दिखज्या लाल रंग।
इस बिन राह ना देवे दिखाई खूब लगया ध्यान में।- 4
वार्ताः- तो आओ देश की आजादी की इस जंग में अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले 22 लाख शहीदों के सपनों को पूरा करने के लिये उनके बताये रास्ते पर चलने का संकल्प लें। उन शहीदों के विचार की, अंग्रेजों के जाने के बाद इस देश में मजदूर किसान खुशहाल हों, सबको मुफ्त पढ़ाई मुफ्त दवाई और रोजगार मिले, भूख, गरीबी, बदहाली ना हो। उस आदर्श के लिये एक बार फिर से जत्थेबंदी की जाये। आम जनता को फिर से संगठित किया जाए और यही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।